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भोजन का त्याग करने से इन्द्रिय-विकार नहीं होता, मन की चंचलता मिटती है, शरीर हल्का रहता है, स्वाध्याय, ध्यान आदि धार्मिक कार्यों के लिये अवसर मिलता है । उपवास के दिन धर्म-ध्यान में ही अपना समय व्यतीत करना चाहिये । उपवास के दिन सोते रहना या टी.वी. देखते रहना उपवास नहीं है ।
आदिसागर महाराज 6 दिन उपवास के बाद 7 वें दिन आहार ग्रहण करते थे । उन्होंने अपने मुनि जीवन के 25 साल तक इस नियम का पालन किया । शान्तिसागर जी महाराज ने 35 वर्ष के मुनि जीवन काल में से 25 वर्ष तो उपवास पूर्वक ही व्यतीत किये और शेष वर्ष में भी अधिकांश तो केवल दूध, चावल और पानी ही लिया । 2. अवमौदर्य भूख से कम खाने का नाम अवमौदर्य है । कम खाने से प्रमाद नहीं रहता, स्वास्थ्य ठीक रहता है, निद्रा नहीं आती, ध्यान में मन लगता है । मुनिराज तो अपने उदर को 4 भागों में बाँट लेते हैं। वह उसके 2 भाग को अन्न से, एक भाग को जल से पूर्ण करते हैं व एक भाग को खाली रखते हैं ।
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एक मुनिराज जी की बात आती है । वे एक महीने के बाद आहार के लिये जाते हैं और निरन्तराय आहार मिलने के उपरान्त भी एक ग्रास लेकर वापिस आ जाते हैं ।
यह मुनिराजों के तो होता ही है, पर हमें भी भोजन में आसक्ति घटाना चाहिये । भूख से कम खाने से धर्म व कर्म दोनों में अच्छा मन लगता है ।
3. वृत्ति परिसंख्यान तप भोजन को जात समय साधु जन कठिन - कठिन विधि ( प्रतिज्ञायं) लेकर निकलते हैं । यदि ऐसी विधि मिलेगी, तो आहार ग्रहण करेंगे, अन्यथा निराहार ही वापिस आ
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