________________
नदी से पानी भर लेते हैं फिर भाजन करेंगे। लेकिन दाल-बाटी खान की इच्छा तीव्र थी उन्होंने सोचा पहले दाल-बाटी खा लेत हैं फिर पानी भर लायेंगे | बड़े असमंजस में पड़ गये बाबाजी। अन्त में जब पानी भरकर लाये और खाने बैठे तो उन्हें मन में बड़ी ग्लानि हुई । मन-ही-मन स्वयं को धिक्कारा कि साधु हो गये पर लोलुपता बनी हुई है | बाबाजी ने दाल-बाटी नहीं खाई। आस-पास खेल रहे बच्चों को खिला दी और खुद पानी पीकर आगे बढ़ गये | एक व्यक्ति यह सब देख रहा था, उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने बाबाजी से पूछ लिया कि आपन इतने चाव से भोजन बनाया और बिना खाये चल दिये? बाबाजी जी हंसने लगे और बोले – भाई! यह मन ऐसे ही मानेगा | मैं जीवन भर इस मन की मानता रहूं ता अपनी साधना कब करुंगा? यह ता सदा मनमानी करेगा।
संसार में तप परम् पवित्र है, मुक्ति लक्ष्मी के चित्त को प्रसन्न करने वाला है, पूर्वोपार्जित कर्मों को नष्ट करने वाला है, काम रूपी दावानल की ज्वालाओं को बुझाने क लिए जल है, इन्द्रिय समूह रूपी सर्प को वश में करन क लिए मंत्र है। इस संसार में जितने भी तीर्थकर, चक्रवर्ती, कामदेव, बलभद्र आदि महापुरुष हुये हैं व सभी तप के प्रभाव से ही हुय हैं। अपने मन पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र उपाय तप ही है |
एक सम्राट था। उसक पास एक बकरा था | अद्भुत बकरा, जो कभी तृप्त नहीं होता था। उस कितना भी खिलाओ, कितना भी पिलाओ उसकी भूख कभी शान्त नहीं होती थी। राजा ने घोषणा करवा दी कि जो भी इस बकरे को तृप्त कर देगा उसे आधा राज्य पुरस्कार के रूप में दिया जायेगा। घोषणा सुनकर नगरवासी बड़े प्रसन्न हुये । प्रतियोगिता में सारा शहर उमड़ पड़ा। सभी ने बकरे
(410)