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कहिये। ___मुनिराज बोले-विदेह क्षेत्र की पुंडरीकिणी नगरी में, मैं एक दरिद्र कुल में उत्पन्न हुआ | मेरा नाम भीम रखा गया। कुछ बड़ा होने पर काललब्धि आदि के निमित्त स एक दिन मैंने एक मुनिराज के दर्शन किये | मैंने उनके पास आठ मूलगुण ग्रहण कर लिये और घर आ गया। जब मेर पिता को इस बात का पता चला तो वे कहने लगे-अरे पुत्र! हम लोग महादरिद्री हैं, सा हम लोगों को व्यर्थ के इन कठिन व्रतों से क्या प्रयोजन? इनका फल इस लोक में तो मिलता नहीं, अतः आ चल स्वर्ग के इच्छुक उस मुनि को ही ये व्रत वापस कर आवें। हम लोग तो इस-लोक-संबंधी फल चाहते हैं. जिससे कि आजीविका चल सके | अतः व्रत देने वाले गुरु का स्थान मुझे दिखा | एसा कहकर पिता मुझे साथ लेकर चल पड़े। ___मार्ग में मैंने देखा कि वज्र केतु नाम के एक पुरुष को दण्ड दिया जा रहा है। तब मैंने पिताजी से कारण पूछा और वे पता लगाकर बोले-यह (सूर्य की किरणों में) धूप में अनाज सुखा रहा था, कि मंदिर का मुर्गा उस खाने लगा, तब इसने उसे इतना मारा कि वह मर गया, इसलिये लोग इसे दण्ड दे रहे हैं।
आगे बढ़कर मैंने देखा धनदेव की जीभ निकाली जा रही है। पूछने पर पता चला
इसने जिनदेव के द्वारा रखी गई धरोहर को हड़प लिया और झूठ बोल गया। पता चलने पर इसकी जीभ उखाड़ी जा रही है।
आगे देखा रतिपिंगल का शूली पर चढ़ाने के लिये ले जाया जा रहा है। पूछने पर ज्ञात हुआ-इसने एक सेठ के घर से बहूमूल्य मणियों का हार चुराकर एक वेश्या को दे दिया, इसलिये कोतवाल
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