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* उत्तम क्षमा
धर्म का पहला लक्षण उत्तम क्षमा है। आत्मा की स्वाभाविक परिणति का नाम क्षमा है। अपनी आत्मा के स्वभाव में स्थिर हो जाने का नाम क्षमा है। व्यवहार में क्रोध के अभाव को क्षमा कहते हैं | प्रतिकूल समागम मिलने पर विकृत परिणति का नहीं होना, खेद खिन्नता नहीं होना, क्षमा कहलाती है। अनुकूल-प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में कषाय से जीव उद्वेलित हो जाता है। अनुकूल परिस्थिति में भी कषाय जगती है और प्रतिकूल परिस्थिति में भी कषाय जगती है। अनुकूल परिस्थिति में मान और लोभ कषाय हमें विकृत बना दती है | तथा प्रतिकूल परिस्थिति में क्रोध और माया हमें अशान्त बना देती है। इन अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में जो शान्त रहता है, वह क्षमा धर्म का प्राप्त हो जाता है | उत्तम क्षमा का मानव जीवन में वही स्थान है जो एक जीव क लिए आत्मा का | जिस प्रकार बिना आत्मा के इस मानव देह का काई मूल्य नहीं, उसी प्रकार क्षमा के बिना आत्मा का भी कोई मूल्य नहीं। 'क्षमा वीरस्य भूषणम् ।' क्षमा धर्म वीरों का आभूषण है। जिसने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली, वही वास्तव में वीर है। महाभारत की अनेक कथाओं में एक कथानक आता है कि एक बार श्रीकृष्ण, बलराम एवं सात्यकी कहीं वन में भटक गये | रात हो गई, रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।
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