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बाहर आकर जब उसने दिन देखा, तो फिर वह भीतर उतरा और भीतर पहले जैसा अंधेरा देखकर रात के भ्रम से फिर लौट आया । इस प्रकार वह कितनी ही बार आया, गया, पर जल नहीं पी पाया । अन्त में वह इतना असक्त हो गया कि उससे बावड़ी के बाहर नहीं आया गया । उसने तब उस घोर अंधेर को देखकर सूरज को अस्त हुआ समझ लिया, और वहीं पर अपने गुरु मुनिराज को स्मरण कर बड़े ही शान्त भाव से मरण को प्राप्त कर सबको प्रीति उत्पन्न करने वाला तद्भव मोक्षगामी प्रीतिंकर नाम का पुत्र हुआ, जिसने महावीर भगवान् के समवशरण में दीक्षा ली और उसी भव में मोक्ष गया ।
संयम का एक अर्थ है हम अपने जीवन को व्यवस्थित करें। हमें जिस समय जो कार्य करना चाहिये उसे उसी समय करें ।
एक गाँव में किसी घर नई बहू आई थी। वह कम पढ़ी-लिखी थी । एक दिन सासू जी ने कहा कि बहू! तुम जाकर पड़ौसी के यहाँ सांत्वना दे आओ, उनके यहा कोई मर गया है । बहू पड़ोसी के घर जाकर न रोई, न दुःख व्यक्त किया, मात्र सांत्वना देकर आ गई । सासू ने समझाया कि बहू वहाँ तो रोना चाहिये था, आगे से ध्यान रखना । दो-चार दिन में फिर किसी के घर जाने का अवसर आया तो सासू ने बहू से कहा कि जाओ उनके यहाँ बधाई देकर आओ । बहू गई और जोर-जोर से रोने लगी और कहा आपको बधाई | सारे लोग बहू की अज्ञानता पर हँसने लगे । पर वह क्या करे, वह तो अनपढ़ थी बेचारी | सासू ने फिर समझाया कि बहू ऐसे में तो गीत गाकर खुशी जाहिर करना चाहिये । तुमने सब गड़ बड़ कर दी । तीसरी बार जब पड़ोसी के यहाँ आग लग गई तो बहू वहाँ जाकर गाना गाने लगी, खुशी जाहिर करने लगी ।
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