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तो मरी और तुम्हारी दोनों की जान बचनी कठिन हो जायेगी। यह सुनकर रानी ने कहा आप चिंता न करें यह तो सब ठीक हो जायेगा | काली न रानी की बात यह मानकर स्वीकार कर ली कि वह राजा को मार डालेगी।
राजा के लौटने पर रानी राजा को उनके जन्म दिन मनाने के बहाने पर्वत की ऊँची चोटी पर ले गई और वहाँ जाकर राजा को बड़ी-बड़ी मालायें पहनाकर रस्सी से बांध दिया और धक्का देकर नीचे गिरा दिया। वह लुढ़कते-लुढ़कते नीचे बहती नदी में जा गिरा और बहता-बहता किसी दूसरे राज्य की सीमा में बहुत दूर चला गया और किसी वस्त के सहारे नदी के किनारे रुक गया। उस समय उस राज्य के राजा का स्वर्गवास हो गया था और यह निश्चय किया गया था कि एक हाथी छोड़ा जायेगा, वह अपनी सूंड स जिस व्यक्ति को उठाकर अपने मस्तक पर बैठा कर ले आयगा उसी को राजा माना जायेगा । छाड़ा हुआ हाथी घूमता-घूमता नदी के किनार पहुँच गया, वहाँ उसने उस व्यक्ति को (राजा का) अपनी सूंड से उठा लिया और अपने मस्तक पर बैठाकर नगर ले गया। लोगों ने उसे हाथी से उतार कर बड़े सम्मान के साथ राजा बना दिया।
दूसरी ओर रानी उस कुबड़े कुरूप काली को बड़ी टोकरी में बैठा कर और अपने सिर पर रखकर इधर-उधर डोलने लगी। वह गाना-गाकर, बाजा-बजाकर लोगों को रिझाने लगी व स्वयं को कुबड़े पति की प्रतिव्रता पत्नी का ढोंग रचकर समय व्यतीत करने लगी। एक दिन वह कुबड़े काली को लेकर उस राज्य में आ गई, जहाँ उसके द्वारा त्यागा पति देवरति कुमार राजा बना हुआ था।
लोगों ने उस कुबड़े पति और रानी की सुन्दरता की राजा के
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