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धारण किया? इस प्रकार माँ व्याकुल होकर बोली । मुनिराज बोले किसके घर जाऊँ, जब यह शरीर ही मेरा नहीं है, तब घर कैसे मेरा हो सकता है?
जहाँ देह अपनी नहीं, तहाँ न अपना कोय |
घर संपत्ति पर प्रगट है, पर हैं परिजन लोय ।।
माँ बोली- मेरे जिगर के टुकड़े ! मैंने तुझे दुःख झेलकर इसलिये नहीं पाला था कि तूं मुझ दुखियारी को छोड़कर वैराग्य धारण करेगा |
मुनिराज ने कहा हम अनेक बार मिले हैं, अनेक बार बिछुड़े हैं । न कोई किसी की माता है, न कोई किसी का बेटा है । यह संसार एक अनोखा स्वांग है। माता बोली मैं इस दिन को नहीं जानती थी । क्या तूं इस भरी जवानी में जाग लेकर कुल का नाम लेने वाली कोई निशानी नहीं छोड़ेगा?
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मुनिराज बोले - जिस वैभव तथा पुद्गल को तुम अपना समझती हो वही एक दिन पराया हो जायेगा अर्थात् माटी बनकर माटी में मिल जायेगा ।
पत्नी कहती है - हे प्रियतम ! तुम मुझे मझधार में छोड़कर मत जाओ। मैं किसके सहारे जीवन व्यतीत करूँगी ? अब मेरे दिन किस प्रकार कटेंगे?
मुनिराज बोल यह नारी पर्याय बुरी है, दूसरों के पराधीन है, तुम धर्म की शरण में जाओ । जिससे यह स्त्रीलिंग समाप्त हो जाये । अब सब कुटुम्बी जन निराश होकर लौट गये। घर पर आये और मथुरा लाल की पत्नी को बुलाकर कहा कि धिक्कार है तुम्हें, जो
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