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मोहित हो गये | वे उसे बार-बार देखने के लिये आतुर हो गये | उनको आतुर देख अप्सरा ब्रह्मा जी के दाहिनी ओर जाकर नृत्य करने लगी। अप्सरा को देखने की लालसा से ब्रह्मा जी ने अपनी 1000 वर्ष की तपस्या के फलस्वरूप, पूर्व दिशा में अपना मुँह बना लिया । तब अप्सरा ब्रह्मा जी के पीछे चली गयी उस देखने की तीव्र इच्छा से ब्रह्मा जी ने अपनी तपस्या के बल से दक्षिण दिशा में अपना मुँह बनाया और अप्सरा को देखने लगे। इस घटना को देख वह ब्रह्मा जी के बायीं ओर जाकर नाचने लगी। ब्रह्मा जी ने अप्सरा को देखने के लिये अपनी तपस्या के बल पर पश्चिम दिशा में अपना मुँह बना लिया और अप्सरा का अवलोकन करते हुय अपने को तृप्त करने लगे । ब्रह्मा जी को अपने ऊपर आसक्त देख अप्सरा आकाश में नृत्य करने लगी। ब्रह्मा जी ने अप्सरा को दखने क लिये ऊपर भी मुँह बनाने की कोशिश की। लकिन तपस्या अल्प रह जाने के कारण उनका मनुष्य का मँह न बनकर गधे का मँह बन गया । इस प्रकार ब्रह्मा जी ने अप्सरा का सुन्दर रूप देखने के लिये अपनी हजार वर्ष की तपस्या को नष्ट कर दिया।
सेठ जी देव क पुत्र जिनदत्त थे जो जिनभक्त, धर्मात्मा, पुण्यवान, तथा तेजस्वी थे। माता-पिता, बन्धु आदि के अनेक प्रकार समझाने के बाद भी किसी प्रकार भी कन्या के साथ विवाह करने के लिये तैयार नहीं हुये | वे ही जिनदत्त एक दिन कोटिकूट चैत्यालय में दर्शन पूजन के लिये जा रह थे। वहाँ मंदिर के बाहर दरवाज की सीढ़ियों पर बनी एक पाषाण में उकेरी सुन्दर कन्या का रूप देखकर उस पर मोहित हो गये और बार-बार उसी के विषय में चिन्तन करने लगे, उनके जिनेन्द्र भगवान की पूजा भक्ति के शुभ भाव तुरन्त समाप्त हो गये।