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कमल को सूंघना चाहा की उन्हें उसमें एक मरा हुआ भौंरा दिखाई दिया । उस मृत भौरें को देखकर उन्हें संसार तथा भोगों से विरक्ति हो गई । और अपने एक हजार लड़कों को बुलाकर कहते हैं - तुम लोग राजकाज सम्हालो हम वन में जाकर दीक्षा लेकर आत्म कल्याण करेंगे | यह बात सुनकर सभी राजकुमार उत्तर देते हैं पिता जी, जब आप राज्य व भोगों को बुरा समझकर छोड़ रहे हैं, तो हम भी आपके साथ दीक्षा लेकर कर्मों की फौज से लड़ेंगे। अपने पुत्रों का उत्तर सुनकर चक्रवर्ती प्रसन्न हो जाता है और छह माह के पोते का राजतिलक कर अपने हजार पुत्रों के साथ दीक्षा ले लेता है ।
चक्षु इन्द्रिय सुन्दर रूप, सुन्दर वस्तुयं खेल, तमासे देखना चाहती हैं। वर्षा ऋतु में असंख्य पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं । वे दीपक, लालटेन, बिजली आदि का प्रकाश देखने के लिये दीपक, लालटेन या बिजली के बल्ब पर झपटते हैं और उसी की लौ में, गर्म बल्ब पर जलकर मर जाते हैं ।
खेल तमाशों, सुन्दर रूपों, नृत्य आदि देखने के लिये मनुष्य टी. वी. आदि देखने में घंटों का समय बर्बाद कर देते हैं । ब्रह्मा जी जैसे महान तपस्वी भी सुन्दर रूप देखने के लिये अपनी तपस्या से च्युत हो गये थे । अन्य शास्त्रों में एक कथा प्रचलित है।
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ब्रह्मा जी ने हजार वर्षों तक कठिन तपस्या की थी । उससे इन्द्र का आसन कम्पायमान हो गया था । इन्द्र ने ब्रह्मा जी को तपस्या से डिगाने के लिये तिलोत्तमा नाम की एक सुन्दर अप्सरा को भेजा । अप्सरा आकर ब्रह्मा जी के सामने नाचने लगी तथा बड़े ही मधुर स्वर में गाते हुये कौतुक करने लगी । ब्रह्मा जी ने थोड़ी आँख खोलकर देख लिया । जैसे ही ब्रह्मा जी की दृष्टि अप्सरा पर पड़ी, वे उस पर
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