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मनुष्य विषय-भागों में अपनी शारीरिक शक्ति तथा अध्यात्मिक शक्ति नष्ट करके अपनी इस दुर्लभ मनुष्य पर्याय को व्यर्थ में ही खा देता है। इसी कारण प्राचीन समय में संसार, शरीर व भागों को असार जानकर भरत, बज्र दन्त, सगर आदि चक्रवर्ती, चन्द्रगुप्त आदि सम्राट, सुकुमाल, जम्बू कुमार आदि अनेक वीर तथा धनवान सेठ राज्य, धन, वैभव को छोड़कर संयम धारण कर दिगम्बर मुनिराज (नग्न-मुनि) बन गय और कठोर तपस्या करके अपनी आत्मा को शुद्ध कर अपनी मनुष्य पर्याय को सफल बनाया। ____ अभी से शक्ति प्रमाण संयम को धारण करो, जिससे क्रमशः शक्ति बड़ती जायेगी और हम एक दिन पूर्ण संयमी बनकर अपने परम लक्ष्य अर्थात् मुक्ति को प्राप्त कर लेगें।
हममें जितनी सामर्थ्य है, हमें वहीं से चलना प्रारम्भ करना चाहिये । एक-एक कदम चलकर ही मंजिल तक पहुँचा जाता है। एक युवक था। वह बहुत ऊपर पहाड़ी पर भगवान के दर्शन करने जाना चाहता था । बहुत सोचने के बाद उस युवक ने एक दिन रात में पहाड़ी पर जाने का मन बनाया । एक लालटेन जलाई और घर से बाहर खड़ा हा गया। वह सोच रहा था लालटेन का उजाला तो सिर्फ एक कदम तक ही है और मंदिर बहुत ऊपर पहाड़ी पर था अतः युवक चल नहीं रहा था। वहीं से एक वृद्ध निकला उसने युवक से कहा इतनी रात में तुम यहाँ क्यों खड़े हा? युवक बोला-मैं भगवान के दर्शन करने ऊपर पहाड़ी पर जाना चाहता हूँ, पर इस लालटेन का उजाला ता सिर्फ एक कदम ही है, आग ता अंधेरा है । वृद्ध ने उसे समझाया तुम एक कदम तो चलो, यह उजाला फिर एक कदम आगे बढ़ जायेगा, और तुम एक-एक कदम चलकर मंजिल तक पहुँच जाओगे | वह युवक एक कदम आगे बढ़ गया, तो उजाला भी एक कदम आग बढ़ गया। वह
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