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राजा भर्तृहरि को रानी पिंगला से अतिशय प्रेम था, अतः वह अमरफल स्वयं न खाया, प्रेमवश अपनी रानी पिंगला को जाकर दे दिया ।
रानी पिंगला ने अपने एक अश्वपाल (घुड़साल के अधिकारी) को सज-धज कर घोड़े पर सवार हुआ देखा था । उसे देखते ही वह उसके ऊपर आसक्त हो गई थी और दासी द्वारा उस अश्वपाल को बुलाकर छिपकर उसके साथ व्यभिचार किया करती थी । अतः पिंगला रानी ने वह अमरफल स्वयं न खाकर अपने प्रेमी अश्वपाल को भेंट कर दिया ।
उस अश्वपाल की मित्रता नगर की वेश्या से थी । वेश्या को वह बहुत प्रेम करता था। उसने वह अमर फल स्वयं खाना उचित न समझकर अपनी प्रेयसी उस वेश्या की सुन्दरता स्थिर रखने के लिये उस वेश्या को जाकर दे दिया ।
वेश्या ने वह फल अपने प्रेमी अश्वपाल के हाथ से ले तो लिया, परन्तु उसने सोचा कि मैं रात-दिन व्यभिचार करके पाप कमाती हूँ, अन्य पुरुषों को पथ-भ्रष्ट करती हूँ, अमरफल खाकर और अधिक पाप लीला करूँगी, इससे मेरा भी अहित होगा और संसार का अहित होगा । इस कारण मुझे यह फल खाना उचित नहीं । यह फल तो धार्मिक, प्रजा पालक राजा भर्तृहरि के योग्य है । ऐसा विचार करके वेश्या राज-सभा में पहुँची और उसने वह अमरफल राजा को भेंट कर दिया।
भर्तृहरि ने अमरफल वेश्या के हाथ से लेकर, चकित हो वेश्या से पूछा कि तेरे पास यह फल कैसे आया? वेश्या ने कहा कि आपके अश्वपाल ने मुझे दिया है ।
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