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कौये, गिद्ध, कुत्ते, बिल्ली आदि इस घड़ी भर भी न रहने देते । पं. भूधर दास जी ने लिखा है
देह अपावन अथिर घिनावन या में सार न कोई ।
सागर के जल सां शुचि कीजे तौहू शुद्ध न होई ||
यह शरीर अपवित्र, अस्थिर, घिनावना है। इसमें श्रेष्ठ वस्तु कोई भी नहीं है । यदि इस शरीर को समुद्र के अपार जल से भी धोकर शुद्ध किया जावे तो भी यह शरीर पवित्र नहीं हो सकता । पं. दौलत राम जी ने लिखा है
जे-जे पावन वस्तु जगत में, ते इन सर्व बिगारी ।
यानी - संसार में कपूर, इत्र आदि जो जो पवित्र पदार्थ हैं, इस शरीर ने स्पर्श करते ही उन सबको विकृत करके बिगाड़ डाला है, उनको अपवित्र कर दिया है। पं. भूधर दास जी रहस्य की बात कहते हैं -
पोषत तो दुःख दोष करै अति शोषत सुख उपजावै, दुर्जन देह सरूप बराबर मूरख प्रीति बढ़ावै । राचन योग्य सरूप न याको विरचन योग्य सही है,
यह तन पाय महातप कीजे यामें सार यही है ।।
जिस तरह सर्प आदि दुष्ट जीवों को दूध आदि पिलाकर पुष्ट करो तो उनमें विष आदि की ही वृद्धि होती है। दुष्ट मनुष्यों के पालन पोषण करने से संसार मे दुष्टता की वृद्धि होती है, स्वयं अपने पालन पोषण करने वालों के दुःखदाता बन जाते हैं और यदि दुष्टों को दण्ड देकर दबा दिया जावे, तो वे सीधे होकर सुखकारी बन जाते हैं। इसी प्रकार यह शरीर पुष्ट हो जाने पर धर्म-ध्यान, पूजन,
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