________________
रईस की रईसी का सारा नशा रफूचक्कर हो गया। उसकी अकड़ और अभिमान मिट्टी में मिल गया, यहाँ तक कि उसको बारात छोड़कर चुपचाप भागना पड़ा।
ठीक इसी तरह स्त्री पुरुषों को यह शरीर कर्म द्वारा कुछ समय के लिये किराये पर मिला हुआ है। इस अस्थायी घर में रहकर मनुष्य शरीर की सुन्दरता पर मोहित हो गया है । रात-दिन इसी की सेवा सुश्रूषा में लगा रहता है, शरीर को अपना ही मान बैठा है। इसके द्वारा आत्म कल्याण तो क्षण भर भी नहीं करता, सदा इसके श्रृंगार में तन्मय रहता है । जिस प्रकार घोड़े का सईस रात-दिन घोड़ी की सेवा किया करता है, उसको खिलाता है, पानी पिलाता है, मालिश करता है, उसकी लीद साफ करता है, सब तरह की सेवा चाकरी करता हुआ अपना जीवन बिता देता है, किन्तु कभी उस पर सवारी करके लाभ नहीं उठा पाता, ठीक वैसी ही दशा इस शरीरमोही जीव की जन्म भर बनी रहती है। शरीर को अपनी ही वस्तु समझकर इसे अभिमान हो जाता है, किन्तु आयु कर्म जब इससे (बलात्) जबरदस्ती यह किराये का घर खाली कराता है, तब इसका सारा नशा उतर जाता है । यह शरीर किसका है, जीव का अपना है, या किराये का है, इसका निर्णय उस समय जीव को होता है। इसकी सारी शान, सारी एंठ, अकड़, मिट्टी में मिल जाती है ।
संसारी जीव के साथ ऐसी घटना अनन्तां बार हो चुकी है और दूसरों के साथ होने वाले इस व्यवहार को देखता रहता है, परन्तु फिर भी इस शरीर का दास बना हुआ, इसकी बाहरी सुन्दरता पर मोहित हो गया है | मनुष्य का यह शरीर, जिस पर कि मुग्ध होकर मनुष्य अपने आप को भूल गया है, महा मलिन अशुचि पदार्थों से बना हुआ है। यदि यह चमड़े की चादर इस शरीर पर न होती तो नेवले,
361