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है और संसार में ही भ्रमण कराने वाली है, वह इसे छोड़कर मोक्ष प्राप्त करने के लिये संयम को धारण कर लेता है।
सुकुमाल स्वामी का शरीर कितना सुकुमार था, जिन्हें आसन पर पड़े हुये राई क दाने भी चुभते थे, दीपक की लौ की आर देखने पर उनकी आँखों से पानी आ जाता था। पर जब उन्हें शरीर और आत्मा का भेद विज्ञान हो गया, वे मुनि बनकर आत्मिक सुख में लीन हो गये, तब पूर्व भव के बैर के कारण एक स्यालनी बच्चों सहित तीन दिन तक उनके पैर को खाती रही पर उन्हें कष्ट नहीं हुआ, वे आत्म ध्यान में लीन रहकर समता पूर्वक शरीर को त्यागकर अच्युत स्वर्ग में महर्द्धिक देव हुये।
सुकौशल भी राजकुमार थे पर उन्होंन सारे भोग-विलास छोड़कर अपने पिताजी सिद्धार्थ मुनिराज के पास जाकर मुनि दीक्षा धारण कर ली थी। दोनों मुनिराजां ने चतुर्मास में एक पर्वत पर योग धारण किया। अब चार महीने तक उठना ही नहीं है | योग समाप्त होने पर आहार के लिये पर्वत से उतरते हुये दानों मुनिराजों को व्याघ्री ने (जा सुकौशल की माँ थी और मरकर व्याघ्री बनी थी) देखा और झपटकर अपने ही पुत्र सुकौशल को खाने लगी, पर सुकोशल मुनिराज को जरा भी कष्ट नहीं हुआ और वे आत्मध्यान में लीन हो गये | उन्होंने अन्तिम समय में केवल ज्ञान प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त किया। ___गजकुमार श्री कृष्ण जी के भाई थे । वे भी अत्यन्त सुकुमार थे । व अपने पिता आदि के साथ धर्मोपदेश सुनने के लिये नेमिनाथ भगवान के समवशण में जा रहे थे | मार्ग में एक ब्राह्मण की अत्यन्त सुन्दर पुत्री को देखकर श्री कृष्ण जी ने उसके पिता स गजकुमार के
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