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उसके समान तो कुछ है ही नहीं । यदि लोक व्यवहार में बोलना भी पड़े तो हित- मित- प्रिय वचन ही बोलिये । सत्य ही शिव है, सत्य ही सुन्दर है, सत्य ही कल्याणकारी है। सांच बराबर तप नहीं, इसलिये सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं। सबसे बढ़िया आँखों की भाषा होती है ।
भगवान महावीर के समय में चंड कौशिक नाम का एक जहरीला सर्प था । वह इतना जहरीला था कि उसके समीप से कोई भी नहीं जा सकता। दो-दो मील दूर तक के पेड़ उसके जहर से सूख गये थे । वातावरण विषाक्त हो गया था। मुनिराज महावीर को ग्वाले ने मना किया, आगे मत जाना, नाग डस लेगा । लेकिन यागियों की प्रवृत्ति बड़ी विचित्र होती है । वे आगे बढ़े | चंडकौशिक को क्रोध आ गया। अब तक किसी की उसके निकट आने की हिम्मत नहीं हुई थी । किसी का साहस नहीं हुआ था । पर मुनिराज महावीर उसके सामने जाकर रुक गये । गुस्से में आकर उसने उनके पैरों में काट लिया। क्रोध से जहर उगलना शुरू कर दिया। महावीर ध्यानस्थ, वात्सल्य मूर्ति, मंद-मंद मुस्करा रहे हैं । परम शांत । अन्त में जब उसका गुस्सा शांत हो गया, तब मुनिराज महावीर ने नेत्रों की भाषा से समझाया । हे आत्मन् । पिछली पर्याय में जघन्य कर्म के पाप से तुम सर्प जैसी जाति में आये हो । अब यहाँ सभी से वात्सल्य भाव रखो । बिना सताये कोई किसी को कष्ट नहीं देता । वह सर्प समाधि मरण करके अच्छी गति को चला गया । सत्य ऐसा महान है । सर्वोत्तम भाषा है मौन | मौन रहिये, एक अक्षर से काम चल जाये तो अधिक मत बोलिये। जब भी बोलिये मीठे वचन ही बालिये । मीठे वचन बोलने से पराया भी अपना हो जाता है ।
तुलसी मीठे वचन तें, सुख उपजत चहुँ ओर ।
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