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पहुँचा सकते हैं । नीतिकारों ने लिखा है
संसार कटुक - वृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे । सुभाषितं च सुस्वादु संगतिः सुजनैर्जनेः ।।
संसार के कड़वे वृक्ष में दो ही फल अमृतोपम हैं । वह है मधुर संभाषण और सुसंगति । वाणी एक ऐसा वशीकरण है, जो लाखों को एक साथ जोड़ देती है, तथा वाणी ही एक ऐसी शक्ति है, जो लाखों को तोड़ भी देती है । एक आवाज पर लाखों का संहार हो जाता है, तो एक आवाज पर लाखों के संहार को रोका भी जा सकता है । इसीलिये कहा है
जिव्हा में अमृत बसे, विष भी तिसके पास । इक बोले तो लाख ले, इकते लाख विनाश ||
जिव्हा से अमृत भी उड़ेला जा सकता है, तो जिव्हा से जहर भी उगला जा सकता है । अतः हमें सदा अपनी वाणी पर अंकुश रखना चाहिये | संत कहते हैं- बोलो, पर बोलने से पूर्व विचार कर लो । जो व्यक्ति बोलने से पूर्व विचार करता है, उसे फिर कभी पुनर्विचार नहीं करना पड़ता । और जो व्यक्ति बिना विचारें बोल देता है, उसे जीवनपर्यंत विचार करने को बाध्य होना पड़ता है । वह पूरे जीवन पछताता रहता है ।
एक पढ़े-लिखे नवयुवक की शादी गाँव की एक अनपढ़ लड़की से हुई। लड़का ज्यादा पढ़ा-लिखा था । वह अपने आपको कुछ अधिक एडवांस मानता था । लड़की की पहली विदा हुई, वह अपने मायके पहुँची । पत्नी के वियोग में व्याकुल लड़का बिना पूर्व सूचना के अपनी ससुराल पहुँच गया । पहुँचते ही उसने कहा
"मैं आज पत्नी को लेने के लिये आया हूँ और कल ही मैं यहाँ
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