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रही स्नेह के कारण झूठ बोलने की बात । दूसरी बात - लोभ के कारण भी अक्सर झूठ बोला जाता है। धन- पैसे के लोभ में पड़कर आदमी न्याय-नीति को छोड़ देता है और येन केन प्रकारेण समृद्ध होने के लिये असत्य का सहारा लेता रहता है । सत्यघोष ने अपने झूठे व्यवहार से अपने आपकी असत्यता को दर्शा दिया और उसका प्रतिफल अपमान / अनादर के रूप मे उसने पाया । और तीसरी बात, भय के कारण भी झूठ बोला जाता है। जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब भयभीत होकर झूठ का आलम्बन ले लिया जाता है । उस परिस्थिति में उस झूठ से वह अपनी सुरक्षा मानता है । सत्यवादी युधिष्ठिर के जीवन में ऐसे ही एक झूठ ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया । इस झूठ से उनकी वेदाग प्रतिष्ठा में भी धब्बा लग गया। महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को हतोत्साहित करने के लिये युधिष्ठर
यह वाक्य बोला-'अश्वत्थामा हतो हताः नरो वा कुंजरो वा ।” जिसका अर्थ अश्वत्थामा मारा गया, मनुष्य अथवा हाथी । इस वाक्य के बोलते समय युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा हतो हताः तो बहुत जोर से बोला किन्तु 'नरो वा कुंजरो वा' धीरे से बोल दिया । अश्वत्थामा हतो हताः बोलते ही उनके पक्षधर विजय सूचक शंखादिक की ध्वनि करने लगे, जिससे आगे के शब्द किसी को सुनाई ही नहीं दिये । इस बात को सुनकर कौरव पक्ष में बड़ी निराशा का वातावरण छा गया । क्योंकि अश्वत्थामा उनकी सेना का एक विशिष्ट वीर योद्धा था । इस तरह भयाक्रान्त अवस्था में झूठ का सहारा लिया गया जो कि धोखा है, असत्य है । इसलिये सत्यवादी को स्नेह, लोभ और भय जन्य परिस्थितियों में बड़ी दृढ़ता से अपने धर्म का पालन करना चाहिये ।
अनन्त जन्मों का जब पुण्य फलता है, तब मनुष्य पर्याय मिलती है | मनुष्य पर्याय में हम वाणी के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक
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