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होऊँ। जिसे सत्यानुभूति नहीं हुई, वह कबूतर की तरह अपने गंदे घर को छोड़कर नहीं जाता, वहाँ पड़ा रहता है | आचार्यों का कहना है-सदा हित-मित-प्रिय बचन बोलो और अपन सत्य स्वरूप को जानने का प्रयास करो।
नहीं झूठ सम पाप कोई, नहीं सांच सम ज्ञान | सत्य स होता प्राप्त है, वीतराग विज्ञान || वीतराग विज्ञान, चराचर दिव्य दिखाता । कर्म नाशकर जीव, स्वयं मुक्ती को पाता ।। विशद सिन्धु अपने जीवन में सत्य न छोड़ो ।
झूठ बचन से नाता तुम हर दम का मोड़ो ।। धर्म का छठवाँ लक्षण है-उत्तम संयम | संयम सद्गति प्राप्त करने का प्रमुख साधन है। जिस प्रकार रास्त पर चलने के लिये रास्ते क नियमों का पालन करना अनिवार्य है, उसी प्रकार मोक्षमार्ग पर चलने के लिए नियम-संयम का पालन करना अनिवार्य है। इन्द्रियों एवं मन को काबू में रखने एवं कषायों पर विजय प्राप्त करने में संयम ही समर्थ है।
संयमे न नरा धीरो, गंभीरः शल्य निर्गतः । संयमः स्वस्थितिसतस्मातस्यां स्वस्मै सुखी स्वयम ।।
||सहजानं दगीता ।। संयम में मनुष्य धीर होता है, गंभीर होता है, निःशल्य होता है और सुखी होता है | आत्मा में भली प्रकार से स्थित हा जाने को संयम कहत हैं। इस संयम के लायक हम बने रहें, ऐसी प्रवृत्ति करने का नाम भी संयम है | शुद्ध खाना, विषयों का त्याग करना, परिग्रह का त्याग करना, षटकाय के जीवों की रक्षा करना, यह सब संयम
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