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और मेरे बाप की पत्नी, यद्यपि सत्य दोनों हैं, लेकिन मेरी माँ में मधुरता है और मेरे बाप की पत्नी में कड़वापन है, अमर्यादा है । आचार्यों ने कहा है कि सत्य का प्रतिपादन तो हो पर भाषा में मधुरता हो । मर्यादा बनी रहे । सत्य ही बोला और यदि आपको ऐसा I लगे कि यहाँ सत्य बोलना कठिन है, सत्य बोलेंगे तो मामला बिगड़ जायेगा, फिर चुप / मौन हो जाओ, पर यदि बोलो तो हित- मित- प्रिय सत्य ही बोलो। प्रिय झूठ भी मत बोलो। लोगों को खुश करने के लिए चापलूसी करना, उनकी हाँ में हाँ मिलाना, मक्खनबाजी करना, ये मक्खनबाजी थोड़े समय के लिये तो अच्छी लगती है, लेकिन इसका परिणाम अच्छा नहीं निकलता | अकबर बीरबल का एक प्रसंग
दरबार लगा हुआ था, अकबर ने बीरबल से कहा- बीरबल आज मैं बैगन की सब्जी खा कर आया हूँ। क्या बताऊँ बीरबल ! बैगन की सब्जी बड़ी अच्छी लगी। सभी सब्जियों में श्रेष्ठ है, स्वादिष्ट है । और जब राजा ने बैगन की खूब प्रशंसा की तो बीरबल ने भी जी भरके बैगन की प्रशंसा कर दी। बैगन ! बैगन तो बहुत अच्छे हैं। राजन ! उनके बारे में क्या कहा जाय ? बेताज बादशाह हैं, ताज नहीं फिर भी प्रकृति से उस पर ताज रखा गया है। बैगन के सर पर कैप / टोप सा लगा होता है। अकबर ने जब बीरबल के मुख से भी प्रशंसा सुन ली, तो दूसरे दिन से अन्य सब्जियों को छोड़कर खूब बैगन खाना शुरू कर दिया। बैगन खाने से अकबर को वादी चढ़ गई। बीमार सा हो गया । वह सेवकों का सहारा लेकर दरबार में आया, सिंहासन पर बैठा और बाला बीरबल क्या बताएँ, बैगन बड़े खराब होते हैं । बैगन खाने से मैं बीमार पड़ गया। जैसे ही अकबर ने कहा कि बैगन तो बड़े खराब होते हैं, बीरबल खड़े होकर बोले हाँ राजन! बैगन बड़े खराब होते हैं, उसमें कोई गुण नहीं होते। इसलिये उसका नाम
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