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उतरना है।
सत्य बोलने वाल का सभी जगह सम्मान किया जाता है | एक बार एक नगर के बाहर एक मुनिराज आये थे। नगर के सभी स्त्री-पुरुष उनका दर्शन करने तथा उपदेश सुनने के लिये उनके पास गये | उपदेश सुनकर प्रायः सभी ने महाराज से यथाशक्ति व्रत नियम ग्रहण किये।
जब सभी स्त्री-पुरुष वहाँ से चले गये, तब एक व्यक्ति बड़े संकोच के साथ महाराज के पास आया और नम्रता क साथ बोला कि महाराज! मुझ भी कोई व्रत दे दीजिये | महाराज ने उससे पूछा कि तू क्या काम करता है?
उसने उत्तर दिया कि मैं चोर हूँ, चोरी करना ही मेरा काम है | महाराज ने कहा-फिर तू चोरी करना छोड़ दे |
चोर न विनय क साथ कहा कि, गुरुदेव! चोरी मुझ से नहीं छूट सकती, क्योंकि चोरी के सिवाय मुझे और कोई काम करना नहीं आता।
मुनिराज ने कहा कि अच्छा भाई! तू चोरी नहीं छोड़ सकता तो झूठ बोलना तो छाड़ सकता है।
चोर ने प्रसन्नता क साथ उत्तर दिया कि हाँ महाराज! मैं असत्य बोलना छोड़ सकता हूँ | महाराज ने कहा कि बस, तू झूठ बोलना ही छोड़ दे | कैसी ही विपत्ति आवे, परन्तु तू कभी असत्य न बोलना ।
चोर हर्ष के साथ हाथ जोड़कर मुनि महाराज के सामने असत्य बोलन का त्याग करके अपने घर चला गया।
रात को वह चार राजा की अश्वशाला में चोरी करने के लिये