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बादाम का ऊपर का काठ अलग है, भीतर भी एक पतला छिलका है, जा गर्म पानी में डालने पर अलग होता है और गिरी अलग है | इसी प्रकार चेतन आत्मा अलग है | शरीर ऊपर का काठ सदृश्य है, और रागादि भीतर का छिलका है, जो तपस्या रूपी अग्नि में तपाने से अलग होता है | आत्मा उन सबसे अलग है। ज्ञानी जीव, जिनका राग दूर हो गया है, उन्हें शरीर पर चोट लगन पर भी कष्ट नहीं होता। जिसे स्व व पर का भेदज्ञान हो जाता है, वह अपनी वाणी में भी हित-मित-प्रिय वचन बोलता है।
जैसा देखा सुना, वैसा कह देना लौकिक सत्य हो सकता है, पर यहाँ उत्तम सत्य की बात है। स्व-पर हितकारी परिमित तथा मिष्ट वचन ही सत्य हैं। और दूसरों का अहित करने वाल सभी वचन असत्य हैं, भले वह सच बोल रहा हो ।
एक राजा के पास एक ऐसा केस आया, जिसमें मृत्यु दण्ड देना जरूरी था। जैसे ही मृत्युदण्ड सुनाया गया, उस कैदी ने राजा को गालियाँ देना शुरू कर दी। पास में खड़े बड़े मंत्री से राजा ने पूछा-यह कैदी क्या कह रहा है? तो मंत्री बोला-महाराज! कह रहा है, गलती हो गई, आप तो महान है, दया के सागर हैं, यदि क्षमा कर सकें तो क्षमा कर दें, आगे से ऐसा नहीं करूंगा। छोटा मंत्री किसी बात पर बड़े मंत्री से नाराज था । यह सुनकर छोटे मंत्री को बदला लेने का मौका मिल गया। उसने सोचा अब तो बड़ा मंत्री फँस गया । उसने खड़े होकर बोला-महाराज! यह कैदी तो आपको गाली दे रहा है और यह बड़ा मंत्री भी झूठ बोल रहा है। राजा को सब बात समझ में आ गई और वे छोटे मंत्री से बोले-बैठ जाओ, इस समय तुम्हारा बाला गया सत्य मुझे पसंद नहीं है और बड़े मंत्री का झूठ भी मुझे पसंद है। इस कैदी को रिहा कर दिया जाये |
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