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शांतदसा तिन्ह की पहिचानि करै कर जोरि बनारसि वंदन । ।
जिनके हृदय में निज-पर का विवेक प्रकट हुआ है, जिनका चित्त चंदन के समान शीतल है अर्थात् कषायों का आताप नहीं है । जो निज - पर विवेक होने से मोक्ष मार्ग में मौज करते हैं, जो संसार में अरहन्त देव के लघु पुत्र हैं, अर्थात् थोड़े ही काल में अरहन्त पद प्राप्त करने वाले हैं, जिन्हें मोक्ष पद प्राप्त कराने वाला निर्मल सम्यग्दर्शन प्रकट हुआ है, उन सम्यग्दृष्टि जीवों की आनन्दमय अवस्था का निश्चय करके पं. बनारसीदास हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं।
सम्यग्दर्शन के लिये विश्व के अन्य पदार्थों द्रव्यों को जानना आवश्यक नहीं है, केवल पर से भिन्न अपनी आत्मा को जानना ही पर्याप्त है । यह बात निम्न दृष्टान्त से स्पष्ट हो जाती है
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एक बार क्षत्रिय और वैश्य में लड़ाई हो गयी, क्षत्रिय को वैश्य ने हरा दिया । वैश्य क्षत्रिय की छाती (सीना ) पर सवार हो गया । उसी समय क्षत्रिय ने वैश्य से पूछा - "तुम कौन हो?" वैश्य ने उत्तर दिया- मैं वैश्य हूँ | क्षत्रिय ने सुनते ही उसे नीचे गिरा दिया । लड़ाई से पूर्व वह यह नहीं जानता था कि यह वैश्य है । उसी प्रकार आत्मा में अनन्त शक्ति है, पर जब तक इस जीव को अपना परिचय प्राप्त नहीं होता तब तक कर्म इसे संसार में भटकाते रहते हैं ।
एक शेर सो रहा था । उस शेर की पूंछ पर आकर एक मक्खी बैठ गई, उस शेर के आसपास मच्छर भी मंडराने लगे, पर शेर सोया हुआ है । खरगोश के बच्चे ने देखा कि देखो मक्खियाँ और मच्छर कितन निर्भीक होकर शेर के पास घूम रहे हैं, हम भी जायें और हम भी खेलें । तो वह खरगोश का बच्चा उछलता हुआ शेर के पास जाकर खेलने
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