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वही | अहंकार का विसर्जन कर देने पर छोटा व्यक्ति भी महान हो सकता है और जीवन में अहंकार आ जाये तो महान व्यक्ति भी छोटा बन सकता है। पुराणों में वर्णन आता है कि रावण नरक गया और रावण क भाई, पुत्रादि निर्वाण का गये | सवका भिन्न-भिन्न परिणाम है। सभी अपने-अपने भले-बुरे परिणाम से भली-बुरी गतियाँ प्राप्त करते हैं। यहाँ मोह करने से, गर्व करने से क्या फायदा? गर्व में केवल हानि ही है। मद का अभाव होने से जो मार्दवधर्म प्रगट होता है, वही वास्तविक शरण है।
अहंकार के भार से, दबा है सारा लोक, जिसने जीता अहं को, उसकी होती ढोक | उस की हो ती ढो क, वही परमातम बनते , अहंकार के धारी, जग में माथा धुनते ।। विशद सिन्धु कहते हैं भैया, मृदुता पाना,
छाड़ अहं का भार मोक्ष पद, हमको जाना ।। धर्म का तीसरा लक्षण है-उत्तम आर्जव | ऋजो भावं इति आर्जवम् | भीतर से ऋजुता को जन्म दे देना, सरलता को जन्म देना, छल-कपट को छोड़ देना आर्जव धर्म है | छल-कपट ऐसी बुरी परिणति है कि मायावी व्यक्ति सदा अशांत बना रहता है। चेहरा उदास हो जाना, भयभीत हा जाना आदि माया के लक्षण हैं | मायाचारी व्यक्ति की विशेषता यह है कि वह जो नहीं है, ऊपर से वैसा दिखना चाहता है। उसक मन में कुछ होता है और शरीर से कुछ और ही करता है | मायावी पुरुष सब जगह शंकित रहता है कि कहीं मेरी मायाचरी खुल न जाये । ये दोनों व्यक्ति परस्पर बातचीत कर रहे हैं, कहीं मेरे मायाचार का भद न खुल जाय, इत्यादि रूप से
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