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है और न कभी रहेगा। धन के लोभ के कारण 99 के फेर में पड़कर मनुष्य अपने अमूल्य जीवन को समाप्त कर देता है।
एक नगर में एक धनिक सठ रहता था | उसके पास काफी धन था, फिर भी उसकी इच्छा बढ़ती ही जाती थी, जिससे वह रात-दिन धन कमाने में लगा रहता था। न वह आराम से भोजन करता था, न कुछ समय परिवार के साथ बिताता था, न आराम स सोता था |
उसके घर के पास एक संतोषी ब्राह्मण रहता था, जो कवल एक दिन की भोजन-सामग्री संचित रखता था। एक दिन सेठ के घर अच्छा भोजन बना | उसने रात का कुछ भोजन अपने पड़ोसी ब्राह्मण के घर भेजा, किन्तु ब्राह्मण ने यह कहकर भोजन लौटा दिया कि मेरे घर कल के लिए भाजन-सामग्री रखी हुई है।
सेठानी ने सेठ से ताना मारते हुये कहा कि देखो ब्राह्मण की संतोष वृत्ति को, और अपनी आशा-तृष्णा को | सेठ ने उत्तर दिया कि ब्राह्मण निन्यानवे के फेर में आकर सब संतोष भूल जावेगा। ऐसा कहकर सेठ ने एक रुमाल में 99 रुपये बाँधकर चुपचाप ब्राह्मण के आँगन में डाल दिये।
ब्राह्मण जब सुबह उठा, तो उसने 99 रुपये की पोटली अपने आँगन में पड़ी हुई पाई। उसे देखकर ब्राह्मण बहुत खुश हुआ | उसन अपनी ब्राह्मणी से कहा कि किसी तरह अधिक परिश्रम करके एक रूपया कमाऊँगा, जिससे ये 100 रुपये हा जायेंगे | यह सोचकर उसने अधिक दौड़-धूप करक 99 से 100 रुपये कर लिये | फिर उसने सोचा कि सौ रुपये ठीक नहीं हाते, इन्हें सवा-सौ करना ठीक रहेगा। यह सोचकर अपने आराम का समय कम करक और अपने भोजन में से बचत करके उसने कुछ दिन में सवा सौ रुपये कर
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