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________________ जो नहीं लायेगा, उसे 500 रुपय का दंड देना होगा। एसी अजीब सूचना सुनकर सब हैरान हुये और एक दूसरे को देखने लगे, परन्तु किसी में भी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई। दूसरे दिन लोग उस वणिक की दुकान पर कंबल खरीदने पहुँचने लगे | वणिक बड़ा हैरान कि पूरे चार माह में मेरा एक भी कंबल नहीं बिका, पर आज तो ग्राहक-पर-ग्राहक दुकान में आते जा रह हैं | वह बड़ा प्रसन्न हो गया। उसने ढाई रुपये का कंबल पाँच रुपये में बेचना शुरू कर दिया। परन्तु थोड़े समय में उसने देखा कि दो ग्राहक कम्बल लेकर जा रहे हैं और चार ग्राहक लेने आ रहे हैं। उसन तुरन्त ही पाँच रुपये की कीमत को पच्चीस रुपये में बदल दिया। सारे कंबल उसने ढाई घंट में बेच दिये, अपने लिये सिर्फ एक कंबल बचा लिया। आखिर बीरबल भी उस व्यापारी के पास कंबल लेने पहुँच गया । जब देखा कि एक भी कंबल नहीं है, तब बीरबल ने कहा कि मुझे एक कंबल जरूर चाहिये | आप चाहे जितनी कीमत ले लो, पर कंबल मुझे दे दो । वणिक ने कुछ क्षण सोचकर अपने लिये रखा हुआ कंबल निकाल दिया और बोला कि पूरे ढाई सौ रुपये लूँगा। बीरबल ने सोचा कल दरबार में 500 रुपये का दंड देने से तो यह ढाई सौ ही ठीक हैं। बीरबल कम्बल खरीदकर चला गया । बीरबल के जाने के बाद वणिक इस सोच में डूब गया कि ढाई रुपये का कंबल ढाई-सौ रुपये में बेचकर मैंने इतना लाभ कमाया, कितना अच्छा होता यदि मैं सारे कंबल ढाई सौ रुपये में बचता | आज शाम तक तो मरे पास सवा लाख रुपये इकट्ठे हो गये होते । मगर मैं चूक गया। एसा सोचकर वह उदास हो गया । (249)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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