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को ही जन्म देता है। यह त्रैकालिक सत्य है कि मन-वचन और काय के टेड़ेपन से आत्मा व परमात्मा के दर्शन कभी भी संभव नहीं है। हमें अपने मन को वश में रखना अनिवार्य है, अन्यथा मन जैसा नचायेगा हमें नाचना पड़ेगा। अनन्त-अनन्त युग समाप्त हो गये, होते जा रहे हैं, परन्तु यह मन कपट करना नहीं छोड़ता, मायाचारी का परित्याग नहीं करता। वास्तव में इस चंचल मन पर हमें सवार होना चाहिये था, इसकी बागडोर हमारे हाथ में होनी चाहिये थी, परन्तु दुर्भाग्य से आज वह हम पर सवारी कर रहा है। आर्जव धर्म को प्राप्त करने क लिये अपन मन, वचन, काय को सरल बनाओ।
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