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राजा ने एक पत्र लिखकर उसे दिया और कहा-जाओ, यह पत्र भण्डारी को दे दो | वह पत्र लेकर जा रहा था तो रास्ते में राजपुरोहित ने उससे कहा-भाई! आज तुझ जो यह पत्र मिला है, यह मेरा ही तो प्रताप है। लाओ यह पत्र मुझे दे दो और बदले मे य पच्चीस रुपये ले लो | वह बेचारा गरीब था । उसने सोचा जितना आये उतना ही अच्छा। उसने पच्चीस रुपये लेकर वह पत्र राजपुरोहित का दे दिया । राजपुराहित पत्र लेकर भण्डारी के पास पहुँचा। भण्डारी ने पत्र पढ़ा। उसमें लिखा था
रुपया दीज्यो रोकड़ा, मत दीज्यो सौलाक |
घर में आधो धालने, काटी लीज्यो नाक || भण्डारी ने कहा-पुरोहित जी! बिराजिये, अभी आपका बिल पेमेन्ट करता हूँ | पुरोहित मन-ही-मन बड़ा खुश हो रहा था । आज तो इच्छित मिलेगा। भण्डारी एक हाथ में सौ रुपये और एक हाथ में चाकू लेकर आया और बोला-यह लीजिये रुपये, पर बदल में नाक दीजिये | यह सुनते ही पुरोहित घबराया और जोर से बोला-यह पत्र मेरा नहीं है, एक ब्राह्मण का है | भण्डारी बोला आप लाये हैं, तो हम आपका ही समझंगे | पुरोहित थरथर काँप रहा था | भण्डारी ने शीघ्र चाकू से उसकी नाक काट ली ।
उस गरीब ब्राह्मण का जब पता लगा कि पुरोहित की ता नाक कट गई । वह पढ़ा-लिखा ता था ही, उसने सब जानकारी की और पुरोहित की धूर्तता को प्रकट करने के लिये वह राज सभा में पहुँचा | प्रतिदिन की भांति 'धर्मे जय, पापे क्षय' इतना कह वह और बोला - भल भलो, बुरे बुरो।
राजा ने आश्चर्य से पूछा क्या तू भण्डारी के पास नहीं गया?
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