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दिया। दूसरे दिन साधु को गिरफ्तार कर लिया गया। ता हमारे ये छल-प्रपंच ज्यादा समय तक नहीं छिप सकते । पानी के बबूले भी पाप की बात का कह दते हैं | मायाचारी करने वाला इस भव में और अगले भवों में भी दुःखी रहता है। निष्कपट व्यवहार के समान इस विश्व में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है और मायाचार के समान निन्दनीय नहीं है।
मायाचारी व्यक्ति दूसरों को ठगने का प्रयत्न करता है, किन्तु वह स्वयं ही ठगाया जाता है। हम समझते हैं कि यह धाखा-धड़ी, यह मायाचारी हम दूसरों के लिये करते हैं। हम सोचते हैं कि हमने आज उसे ठग लिया, धोखा दे दिया। तो ध्यान रखना, जो दूसरों के लिये कुआँ खोदता है, वह स्वयं ही उसमें गिरता है।
एक गरीब ब्राह्मण प्रतिदिन राजसभा में जाता और जोर से बालता धर्मे जय, पापे क्षय | एक दिन बाजार में राजपुरोहित ने उस ब्राह्मण से कहा-राजा उसी को दान देते हैं, जो मुख पर कपड़ा बाँधकर राजसभा में उपस्थित होता है। उसने वैसा ही किया। इधर राजपुरोहित ने राजा से कहा-राजन्! यह जा गरीब ब्राह्मण सभा में प्रतिदिन आता है, वह नाम मात्र का ब्राह्मण है। वह ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर भी शराब पीता है।
राजा बोला-क्या ब्राह्मण होकर शराब पीता है? इसका कोई सबूत है? पुरोहित ने कहा वह सभा में मुख पर कपड़ा बांधकर इसीलिये आता है कि आप तक शराब की दुर्गन्ध न पहुँच जाए ।
दूसरे दिन वह गरीब ब्राह्मण मुख पर कपड़ा बांधे हुये सभा में आया। राजा की दृष्टि उस पर पड़ी। राजा को बहुत दुःख हुआ । हाय यह ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर शराब पीता है। उसी समय
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