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है | यह तभी सम्भव है, जब परिणामों में सरलता हो । अतीन्द्रिय सुख से भरपूर आत्मा का दर्शन उसे ही होता है, जो कुटिल परिणामों को छोड़ कर अत्यन्त सरल व शान्त हो जाता है। ____ मायाचारी प्राणी करता तो प्रयत्न दूसरों क बिगाड़ का है, पर हो जाता है स्वयं का बिगाड़ |
एक शेर कीचड़ में फँसा था और वहीं किनारे पर एक गीदड़ खड़ा था। शेर ने गीदड़ से कहा कि तुम मेरे पास आ जाओ | तब गीदड़ बोला-मामा! तुम मुझे खा जाओगे, इसलिये मैं तो नहीं आता। तब शेर बोला कि जो खाये, उसकी सन्तान मर जायेगी। गीदड़ फिर भी नहीं आया। तब शेर उसके ऊपर झपटने के लिये उछला, तो उसका पेट पास खड़े हुये एक ढूंठ में फंस गया। तब गीदड़ हँसने लगा। शर ने पूछा कि तुम हँसते क्यों हो? गीदड़ बोला-मामा! तरे बाप ने किसी को दगा दिया होगा, इसलिये तू मर रहा है | गीदड़ उसके छल को जानता था, इसीलिये उसकी तो जान बच गई और वह शेर खुद ही मरने लगा। कपटी दूसरे को क्या धाखा देगा, वह तो स्वयं को ही धोखा देता है। फल ता उसे अपने परिणामों का भोगना ही पड़ेगा।
जिसका आत्मा कुटिल है, उसके अन्दर अति सरल आर्जव धर्म कभी भी निवास नहीं कर सकता, जैसे टेड़े म्यान के भीतर सीधा खड्ग कभी नहीं जा सकता। जिसका मन आर्जव गुण से युक्त है, वह प्रत्येक स्थान पर आदर पाता है, उसमें अनेक गुण स्वतः आकर निवास करते हैं और वह प्राणीमात्र का विश्वासपात्र होता है।
सब कुछ जानते हुये भी हम इस माया कषाय को नहीं छोड़ रहे हैं | बहूरूपियापना हमारा स्वभाव-सा बन गया है | असलियत का
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