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गया तो बेचने वाले किसान ने व्यवधान खड़ा करते हुये कहा कि मैंने तो कुआँ और जमीन बची है, उसका पानी नहीं। खरीददार किसान को यह बात समझ में नहीं आई। उसने उस किसान को समझाना चाहा लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा | शार शराबा होने लगा, जिसे सुनकर ग्रामीणजन एकत्रित हो गये | समस्या सबके सामने रखी गयी। सबने समझाया, पर वह मानने को तैयार नहीं हुआ और जोर-जार से कहने लगा कि मैंने ता सिर्फ जमीन और कुआँ बेचा है, पानी नहीं। यह विचित्र बात किसी को समझ में नहीं आ रही थी, क्योंकि न कभी ऐसा सुना था और न देखा था। जमीन बेचन का मतलब खरीददार का कुँए व पानी पर अधिकार स्वयमेव हो जाता है | उसने उलझाने के लिये यह मायाजाल रच लिया | पर यह बात सच है कि यदि व्यक्ति सरल और सज्जन हो तो उसकी बुद्धि भी उसका साथ दती है | खरीददार किसान का दिमाग दौड़ा और उसने कहा कि गाँववासियो! आप सभी इनके कहे का ध्यान से सुनें, 'इन्होंने जमीन और कुआँ मेरे लिय बेचा है, पानी नहीं, ता मैं आप सबके सामने इनसे कहता हूँ कि इतने दिनों से ये मेर कुँए में पानी रखे हुए हैं, इसका किराया मुझे मिलना चाहिये और दूसरी बात आज से य मेरे कुँए को खाली करें, कुँए में से सारा पानी निकालकर ले जायें, किन्तु इतना भी ध्यान रखें कि यदि एक बूंद पानी भी हमारी जमीन पर गिरा, तो उसका हर्जाना इन्हें देना पड़ेगा। फिर क्या था? दूसरों का फँसाने के लिये रचा गया जाल खुद को ही फँसाने वाला हो गया। अतः मजबूर होकर उसे क्षमा माँगनी पड़ी और समझौते का रास्ता अपनाना पड़ा। कषाय तो कषाय हाती है, चाहे क्राध हो, चाहे मान हो, चाहे माया हो, सभी आत्मा का अहित करने वाली होती हैं | हमें सदा इनसे बचने का प्रयास करना चाहिये ।
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