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आकृति वाला क्रूर व्यक्ति कोई नहीं मिला, अतः मैंने तुम्हारा ही चित्र बनाने का निश्चय किया है | कैदी ने कहा-चित्रकार जी! क्या आप उस बालक का चित्र दिखा सकत हैं? चित्रकार ने उस बालक के चित्र को निकालकर उसे दिखाया । चित्र देखते ही उसकी आँखों से
आँसू टपकन लगे | वह दुःख के महासागर में डूब गया, चहरे पर उदासीनता झलकने लगी। चित्रकार ने पूछा-आप चित्र देखकर रुदन क्यों कर रहे हैं? क्या बात है? कैदी बोला-चित्रकार जी क्या कहूँ? बालक का यह चित्र मेरे ही बचपन का है। कुसंग के प्रभाव से मैं ऐसा बन गया। मैं पहले कैसा था और आज कैसा हो गया हूँ? मेरी वह सुंदरता, सहजता, सरलता अब कहाँ चली गई? पहले लोग मुझे प्यार से देखते थे और आज घृणा से ।
जिसको जैसा संग मिल जाता है, वह वैसा ही बन जाता है। भले व्यक्ति की संगति से मनुष्य भला बन जाता है तथा बुरे व्यक्ति की संगति से बुरा | अतः सभी को मायाचार और मायाचारी करने वाले व्यक्तियों की संगति छोड़कर, सरल परिणामों के द्वारा अपनी आत्मा की उन्नति और शिवगति का पात्र बनना चाहिये।
जैसे पाषाण में, पाषाण की सब प्रतिमायें हैं, जिसका विकास कर लो वही प्रकट हो जाती है | वैसे ही हम आत्माओं में भी हमारा सब कुछ है, जिसका विकास कर लो वही प्रकट हो जाता है। अतः सभी को सदा सत्-संगति करक अपने जीवन को पवित्र व सरल बनाना चाहिये।
मायाचारी व्यक्ति अपनी मनोवृत्ति को सदा कुटिल बनाये रखते हैं और धोखा देकर एवं झूठ बोलकर अपनी कुशलता या चतुराई पर मुग्ध रहते हैं | पर उन्हें यह ज्ञात होना चाहिय कि पर का ठगा जाना
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