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यानी-जब धन आता है तो छप्पर फाड़ कर ऊँच वृक्ष पर लगे हुए नारियल के फल में आये हुए पानी की तरह चुपचाप आ जाता है और दुर्भाग्यवश जब वह धन चले जाने का समय आता है तब ऊपरी सब ठाठ बने रहते हुये भी ऐसे चला जाता है जैसे खाये हुए कैथ को हाथी शौच करते समय निकाल देता है। हाथी कैथ का फल बिना तोड़े-फोड़े साबुत खा जाता है | जब वह खाया हुआ कैथ शौच करत समय हाथी के पेट से बाहर निकलता है तब वह वैसा ही पूरा साबुत निकलता है | टूटा-फूटा या छेददार नहीं होता, परन्तु भीतर से बिलकुल पोला, रबर की गैंद की तरह खाली होता है। उसमें से गूदा किस तरह हाथी के पेट में निकल जाता है यह पता नहीं चलता।
भारत में पाकिस्तान बनने से पहले सिन्ध, पंजाब आदि पाकिस्तानी प्रान्त में बड़े सेठ, जमींदार, उद्योगपति धनिक हिन्दू थे। पाकिस्तान बनते ही उनकी सम्पत्ति नष्ट-भ्रष्ट हो गई। उनके दरिद्र होने में कुछ भी दर न लगी। भारत में लगभग 600 राजा लोग थे, उनका राज्य छिनते एक वर्ष भी न लगा। आज वे ही राजा-महाराजा अपने निर्वाह के लिये भी परमुखापेक्षी बन गये हैं। जमीदारों की जमीनें छिन जाने स, जागीरदारों की जागीरें छिन जाने से, जमीदारों व जागीरदारों की ऐसी दुर्दशा हुई कि उनमें से बहुत से पागल हो गये । इस प्रकार लक्ष्मी क आते-जाते देर नहीं लगती। लक्ष्मी सदा किसी के पास स्थिर नहीं रहती।
जिस युवा अवस्था (जवानी) पर मनुष्य को अभिमान होता है, एक साधारण स राग के लग जाने पर जवानी का जाश कपूर की तरह उड़ जाता है।