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महिला जानकर उसको पकड़ना चाहा। जब उस महिला ने अपने को अशक्त महसूस किया तो उसने शील की रक्षा के लिये ऊपर से छलांग लगा दी। उस महिला को खरोंच तक नहीं आई तो उसे अपने को पतिव्रता होने का घमण्ड हो गया। वह घमण्डपूर्वक सबसे इस घटना को कहा करती कि मैं इतनी शीलवन्ती हूँ कि पहाड़ से गिरने पर भी मुझे चोट नहीं आई । सब से कहती फिरती । तब लोगों ने कहा कि हम जब तक अपनी आँखों से नहीं देख लेंगे, तब तक कैसे मानंगे ? तब उस महिला ने मान के वश पहाड़ी पर से छलांग लगा दी। नतीजा उसकी टांग टूट गई और सबके सामने अपमानित होना पड़ा। पहली बार वह महिला शीलधर्म की रक्षा के लिये अपने प्राणों की परवाह किये बिना कूद गई थी तो धर्म के कारण उसकी रक्षा हो गई थी। दूसरी बार वह अपने घमण्ड के पोषण के लिए कूदी, जिसके कारण उसकी टांग टूट गई, क्योंकि मान कभी स्थिर नहीं रहने देता, खंडित जरूर होता है । अहंकार, अकड़, घमण्ड आदि ही समस्त विपदाओं की जड़ हैं। जो प्राणी अपना कल्याण करना चाहता है अथवा विपदाओं से बचना चाहता है, उसे अहंकार को छोड़कर मार्दवधर्म को अंगीकार करना चाहिये । मार्दवधर्म से ही स्वर्ग व मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है ।
यह मानकषाय बड़ी सूक्ष्म होती है । बहुरूपणी विद्या की तरह अपना रूप बदलती रहती है । एक व्यक्ति घोषणा करता है कि हम अपने नाम का पटिया नहीं लगवायेंगे, किन्तु सभा में घोषणा, वीडियो, फोटो आदि की चाहना है । पर ध्यान रखना, यह भी अहंकार ही है । आज का व्यक्ति धार्मिक कार्यों में भी अहंकार नहीं छोड़ता । मंदिर या धार्मिक आयोजनों में अभिमान का पोषण चाहता है । यह तो पाप की, कषाय की पुष्टि करना है। जहाँ जिसको छोड़ना चाहिये, वहाँ उसे
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