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कीचड़ लगी हुई है, तब उनक आश्चर्य की सीमा न रही। लोग सोच रह थे कि यहाँ तो वर्षा के दिनों में भी इतना पानी नहीं बरसता कि सड़कों पर इतनी कीचड़ हो जावे | यह ता रेतीला, मरुस्थलीय प्रदेश है | फिर कीचड़ कहाँ से आ गई? महाराजश्री के चरणों में इतनी ढेर सारी कीचड़ कहाँ से लग गई? राजा ने भी देखा, परन्तु उन्होंने सोचा जनसमूह में सबके सामने कुछ पूछना उचित नहीं होगा, एकान्त में इसका रहस्य पूछेगे।
साधु महाराज अत्यन्त शान से गर्व के साथ उन सुन्दर-सुन्दर कालीनों पर अपने कीचड़सने पैर रखते हुये चल रहे थे और जब राजमहल में प्रवश किया तो बची हुई समस्त कीचड़ को उन अत्यन्त सुन्दर कालीनों से रगड़-रगड़ कर, पोंछ कर साफ करन लगे ।
एकान्त पाते ही राजा ने महाराज से अत्यन्त विनम्रतापूर्वक पूछा-स्वामी! क्या मार्ग में किसी प्रकार का कोई संकट उपस्थित हो गया था जिसके फलस्वरूप इन श्रीचरणां में इतनी कीचड़ लग गई
है?
__साधु महाराज इस उत्तम स्वागत को अपनी तपस्या की चुनौती मानकर अहं की चोट से उफन रहे थे । व रुष्ट तीखे स्वर में बोले
तुम अपने आपको समझते क्या हा? जब तुम सड़कों पर मखमली कालीन बिछवाकर अपने वैभव का प्रदर्शन कर सकते हो ता मुझ जैसा महान तपस्वी भी उन पर कीचड़सन पैरों स चलकर तुम्हारे गर्व को चूर-चूर कर सकता है |
राजा तुरन्त समझ गये कि यह सब अहंकार की ही परिणति है। सम्पूर्ण स्थिति उनके समक्ष एकदम स्पष्ट हो गई। व मधुर स्वर में बोल-मित्र! मैं तो साच रहा था कि साधु बनने के उपरांत तुम पूर्ण
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