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बंद करें और उनके गुणों को देखने का प्रयास करें।
यदि मार्दवधर्म को प्राप्त करना चाहत हो तो इस मानकषाय से दूर रहो | जिनका शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता, उन्हें गर्म व ठंडी दोनों हवायें परेशान करती हैं | गर्म हवा लगने पर उन्हें लू लग जाती है और ठंडी हवा लगन पर जुकाम हो जाता है। इसी प्रकार जिनका आत्मिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होता उन्हें निन्दा और प्रशंसा दोनों परेशान करती हैं। निन्दा की गर्म हवा लगने पर उन्हें क्रोध की लू लग जाती है और प्रशंसा की ठंडी हवा लगने पर मान का जुकाम हो जाता है | इस निन्दा व प्रशंसा से बचो । दुनिया में निन्दा-प्रशंसा तो सुनने को मिलती ही रहती है। निन्दा शत्रु करते हैं और प्रशंसा मित्र करते हैं, पर यह दोनों ठीक नहीं हैं। दोनों से बचकर रहना चाहिय | बड़े-बड़े महात्माओं तक को अपनी निन्दा सुनकर क्रोध व प्रशंसा सुनकर मान आ जाता है। इसीलिय कहा है -कंचन तजना सहज है, अरु नारी को नह | मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना ये ह |
एक साधु घर, परिवार, धन, स्त्री, सभी कुछ छोड़ देता है, लेकिन वह भी इस मानकषाय का नहीं छोड़ पाता।
एक साधु था। उसन अपनी कठोर तपस्या से सम्पूर्ण देश में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। सभी जगह उसकी प्रसिद्धि का गुणगान होने लगा। उस देश का राजा उसका बचपन का मित्र था। उसकी प्रसिद्धि सुनकर राजा भी श्रीफल लेकर साधुजी के श्रीचरणों में पहुँचा। उसने साधुजी से अपने नगर में पधारने का आग्रह किया । साधुजी ने हाँ या न कुछ नहीं कहा। 'मौनम् सम्मति लक्षणम् समझकर वे अपने नगर लौट आये ।
एक दिन राजा की भावना पूर्ण हुई। साधु महाराज ने उनके