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अल्पमान के कारण ही तपश्चरण करना पड़ा। जरा ही तो विकल्प था कि यह भूमि जिस जगह मैं खड़ा हुआ हूँ, यह तो भरत की है । इसी थोड़े से विकल्प के कारण उन्हें एक वर्ष तक कठिन तपश्चरण करना पड़ा था और जैसे ही उनका विकल्प खत्म हुआ। उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई । अतः मानकषाय कितनी दुःखदायी है ? बड़े - बड़े पुरुष भी मानकषाय के चंगुल में फँसकर परेशान हुये हैं ।
मान कषाय को छोड़ना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि इसकी सूक्ष्म कणिका आत्मा में बैठी रहती है और आँखों में पड़ी किरकिरी की भांति कष्ट पहुँचाती रहती है । जिस प्रकार अंक के अभाव में शून्य का कोई महत्त्व नहीं होता उसी प्रकार मृदुता के अभाव में अन्य किसी क्रिया का कोई महत्त्व नहीं है । उपवास आदि धार्मिक क्रियाओं को करके यदि कोई कहता है, देखो मैंने यह किया, वह किया तो यह भी अहंकार है । जहाँ पर भी मैं, मेरेपन की भावना है वहीं अहंकार का प्रदर्शन है । स्वयं को जाने बिना मैं कि घोषणा मात्र अहंकार का प्रदर्शन है । इसलिए स्वयं के परमात्मा को प्रगट करने के लिए शारीरादि पर - पदार्थों में, मैं और मेरेपन की बुद्धि छोड़नी आवश्यक है ।
एक बार इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया और उनके पति अल्बर्ट प्रिंस में कुछ कहा-सुनी हो गई थी, विवाद हो गया, कुछ वाचनिक प्रहार हो गया। दोनों में जैसे टकराहट हुयी कि महारानी विक्टोरिया अपने कक्ष से बाहर चली गई। काफी समय तक बाहर भटकती रही, जब उसके भीतर का क्रोध शान्त हुआ अर ......... मुझे तो इन्हीं के साथ जिन्दगी गुजारनी है, क्यों फालतू का विवाद बढ़ाऊँ और अपने कक्ष की ओर बढ़ चली, द्वार बन्द था, उसने द्वार खटखटाया, भीतर से आवाज आई, कौन ? उत्तर मिला "मैं इंग्लैण्ड
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