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झूले में झूल रहा है और इसीलिये दुःखी हो रहा है। हमारे दुःख का मूलकारण हमारा अपना अहंकार है। हम सर्वत्र प्रत्येक क्षत्र में मान चाहते हैं और यही चाहना ही हमारे समस्त दुःखों का मूलकारण है। मद आठ प्रकार के होते हैं और सब डुबोनेवाल हैं। मद का नशा डुबोता है और मृदुता हमेशा तिराती है | अहंकार इस जीव का सबसे बड़ा शत्रु है, जो सारे गुणों को क्षण भर में नष्ट कर देता है | ____ आदिनाथ भगवान के साथ चार-हजार राजाओं ने बिना समझे-बूझ दैगम्बरी दीक्षा ले ली। भगवान छह महीने तक ध्यान में लीन थे, तब ये साधु भूख-प्यास की वेदना से भ्रष्ट हो गये | उनमें से मारीचकुमार महामानी था। मान कषाय से उसने अनेकों पाखण्ड मत चलाये | भगवान को केवलज्ञान होने पर सब भ्रष्ट साधु फिर से दीक्षित होकर स्वर्ग चले गय, किन्तु मारीच ने पुनः दीक्षा नहीं ली और कहा कि मैं भी अपने मत का प्रसार करके इन्द्र द्वारा पूजा को प्राप्त करूँगा। इस प्रकार से उसने भगवान क वचनां का अनादर कर दिया तथा मिथ्यात्व का त्याग नहीं किया। इस मान कषाय और मिथ्यात्व के कारण वह असंख्यात भवों तक त्रस व स्थावर यानियों में भटकता रहा और बहुत दुःख उठाया। कालान्तर में सिंह की पर्याय में ऋद्धिधारी मुनिराजों क विनयपूर्वक उपदेश को सुनकर, सम्यक्त्व और पाँच अणुव्रत को ग्रहण कर, अन्त में मरकर स्वर्ग चला गया । वही जीव सिंह से आगे दसवें भव में तीर्थंकर महावीर बना। देखो, जब अहंकार किया, तो पतन हुआ और जब विनय को धारण किया, तो आत्मा का कल्याण करके भगवान बन गया । अतः हमें इस मान कषाय को सदा क लिये छोड़ देना चाहिये ।
देखो, जरा-सा मान का अंश ही बाहुबली स्वामी को कितना बाधक रहा। उन्हें एक वर्ष तक खड़गासन से (खड़े होकर) इस
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