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कि गाली दी और कोई परिणाम ही नहीं निकला। हाँ, कोई दे, और अपन स्वीकार न करें तो तकलीफ तो होगी ही तो हम उनस क्षमा माँग लें उस तकलीफ क लिये कि हम आपसे गुस्सा नहीं हो पायेंगे | यदि हम इस प्रकार कषायों को जीतने का प्रयास करें तो निश्चित ही हम अपने जीवन को धार्मिक बना सकते हैं।
अगर तुम्हें क्रोध से बचना है तो क्रोध का जवाब, गाली का जबाव, पाँच मिनट बाद दें। कोई तुम्हें गाली दे तो कहना कि ठीक है, भाई! तूने अपना काम कर लिया, अब मेरी बारी है | मैं भी अपना काम करूँगा, मगर अभी नहीं, पाँच मिनट बाद, और पाँच मिनट बाद आप गाली का जवाब गाली से नहीं दे सकते क्योंकि क्रोध तो एक तात्कालिक पागलपन है। अगर उस पागलपन के क्षण में जवाब दे दिया, तो दे दिया वरना फिर आप चाहकर भी क्रोध नहीं कर सकते
और यह भी तो संभव है कि इस 5 मिनट क दौरान उसी व्यक्ति को, जिसने तुम्हें गाली दी है, अपनी भूल का एहसास हो जाए और वह तुमस माफी माँग ले | तो यह जो पाँच मिनट का संयम है, संतुलन है, साधना है - यह जीवन के लिये बड़े काम की चीज है। यह पाँच मिनट की साधना 50 फीसदी झगड़ों, झंझटों, परेशानियों से आपको बचा लेगी। यह जीवन के लिये बड़ा उपयोगी सूत्र है।
यदि हम गुस्सा कर रहे हैं तो अन्ततः जिम्मेवार हम स्वयं हैं। यदि किसी ने गाली दी, ता आपने ली क्यों? गाली देना उसकी मर्जी है, मगर लेना या न लेना यह आपकी मर्जी है । आप न लें तो आपका क्या बिगड़ जायगा? गाली तो एक वैरंग चिट्ठी है, जो आपक घर के पते पर आती है और यदि आप उसे लेना चाहो ता डबल टिकिट के पैसे अदा करने पड़ते हैं और यदि उस न लो तो फिर वह चिट्ठी भेजनवाले के पास ही वापिस चली जाती है | तो इस गाली/क्रोधरूपी
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