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इन कषायों को करने के लिये । इसलिये बहुत सावधानी की आवश्यकता है । यदि हम कषाय कर रहे हैं तो अन्ततः जिम्मेवार हम स्वयं हैं, कोई हमसे कषाय करवा नहीं सकता । मेरा चुनाव है कि मैं चाहूँ तो कषाय करूँ, और न चाहूँ तो न करूँ ।
जिसने क्रोध - शत्रु को जीत लिया है, वही वीर - पुरुष क्षमा को धारण कर सकता है। एक बार एक व्यक्ति ने आधे घण्टे तक एक महात्मा जी को गालियाँ दीं, पर वे कुछ नहीं बोले । कमठ ने पार्श्वनाथ पर कई-कई दिन तक उपसर्ग किये, उनको तकलीफ पहुँचाई, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। वे हमेशा अपने मन में क्षमाभाव ही धारण करते रहे और इतना ही नहीं, जिस व्यक्ति ने उनके प्रति अपने मन को खराब किया था वे उसके कल्याण की भावना भाते रहे । बहुत बड़ी चीज है यह । पार्श्वनाथ को केवलज्ञान होते ही कमठ को भी सम्यग्दर्शन प्राप्त हो गया। ये है महापुरुषों की क्षमा । कोई हमारे प्रति कलुषता भी रखता हो तो हमारे आचरण से वह भी निष्कलुष हो जाये । हमारी निर्मलता उसकी कलुषता को हटाने में कारण बने। हमारा क्षमाभाव उसकी शत्रुता को नष्ट कर दे । यदि हमने अपने मन में उसके प्रति क्षमाभाव धारण कर लिया है तो उसे मजबूर होकर मुझे क्षमा करनी पड़ेगी ।
वह व्यक्ति महात्मा जी को जब आधा घण्टे तक गालियाँ देता रहा, पर सामने से कोई जबाव नहीं मिला, तो उसे कुछ समझ नहीं आया, उसने महात्मा जी के ऊपर भूँक दिया । उन्होंने ने दुपट्टे से उसे पौंछ लिया। फिर इतना ही कहा- कुछ और तो नहीं कहना ? दंग रह गया वह, कि अब क्या कहूँ? इतना कुछ करने के बाद भी ये कह रहे हैं कि कुछ और तो नहीं कहना ? इतनी पेशन्स (सहनशक्ति). इतना धैर्य ? मन की इतनी निर्मलता ? ऐसा क्षमाभाव । क्या इसका
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