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भयंकर दुष्परिणामों से जनमानस दुखी तो हो रहा है। अतः सर्वज्ञ-सर्वदर्शी महावीर ने जो अपने ज्ञान-दर्शन में जाना- देखा अनुभव किया, वह मानव समुदाय माने तो उसका भला, वर्तमान भी सुखी और आत्मानंद भी, परभव भी परमानंदमय होगा। न मानें तो उन परमवीतरागी शुद्ध-सिद्धात्मा की कोई हानि नहीं होने वाली है।
राक्षसी प्रवृत्ति है-जीव हिंसा : हिंसा की सूक्ष्मता-18 पापों में वर्तन से पाप कर्मबंध और दुर्गति के दुख-दूसरे जीवों को क्रूर परिणामों, दुर्भाव बिना हानि नहीं हो सकती। एक जीव को मारकर, काट-कत्ल करके-करवाकर खा जाना, एक पाशविक - राक्षसी प्रवृत्ति है। घोर हिंसा है। अन्य कई छोटे जीवों को भी मनुष्य सकारण या निष्कारण, किसी प्रयोजन से, बिना प्रयोजन के खेल में, मनोरंजन हेतु, लापरवाही से, अविवेक से दुखी करता है, मारता है, यह भी हिंसा है। सभी
जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता, सुखी होना चाहते हैं, दुखी नहीं होना चाहते। सभी को अपने प्राण प्यारे लगते हैं। भगवान् महावीर एकमात्र धर्मवेत्ता हैं कि पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय (पांच स्थावर काय) को जीव मानते हैं। क्रमशः पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति, जिनका शरीर है और उनके साथ असंख्य जीव होते हैं, उन्हें भी, जीवान्त होने से, मनुष्य जैसी वेदना होती है। पौधे का पेड़ का आंखों से दिखने वाला शरीर है, उसके साथ असंख्य, अनन्त भी, जीव होते हैं। भगवान् महावीर कहते हैं, उन्हें भी बचाओ, संहार मत करो, बचाओ, जिन गृहस्थों को बचाना असंभव - कठिन लगता है, उन्हें भी उपदेश है कि मानो कि वह हिंसा तो है, विवेक रखकर, न्यून-से-न्यूनतम करो।
विभावभाव में जाना हिंसा है: त्रस जीवों की हिंसा से बचो - दो-तीन चार-पांच इन्द्रिय तिर्यंच गति के जीव हैं। इनकी भी हिंसा - विराधना मत करो। पाप बंध है। अभी नहीं बच पा रहे हो तो प्रथमतः मानो कि हिंसा तो है, पाप तो है, बचना है, विवेक रख न्यूनतम करते जाओ। भगवान् महावीर की हिंसा-अहिंसा की व्याख्या कितनी गहन सूक्ष्म है कि यदि मैंने दूसरे जीव को हानि पहुंचाने का मात्र भाव कर लिया, मन-वचन काया से कोई क्रिया नहीं की, उसे हानि भी नहीं पहुंची परन्तु उस विकार भाव (विभाव, पर-भाव) से मेरे ज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्य, ऐसे निज भाव प्राणों, निज गुणों की हानि हो गई। कर्म बंध हो गया । ज्ञाता द्रष्टा भाव में रहो तो भाव प्राणों की रक्षा, विभाव में जाओ तो भाव प्राणों का अतिपात। ऐसा अहिंसा परमधर्म है।
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