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________________ प्राणलेवा रोग आदि तो हैं परन्तु भयंकरतम पाप-बंध है, नरक-तिर्यंच, पुनः पुनः नरक-तिर्यंच-अधोगति में, चर्तुगति में ले जाने वाला है। परम ज्ञानी ने ब्रह्मचर्य को परम तप कहा, उससे अक्षय पद, मोक्ष प्रदाता कहा। स्वयं नौ वाड़ सहित तीन करण तीन योग से ब्रह्मचर्य पाला फिर बोले कि असंयम में, स्वच्छंद यौनाचार में जाकर क्यों अनन्त जन्म-मरण के अनन्त दुख भोगना चाहते हैं। इन महादुखों से बचो। परन्तु खेदाश्चर्य है कि महावीर के ऐसे सदाचारी कुलों में ऐसे कुलदीपक-कुलदीपिकाएं जन्म ले चुकी हैं जो विवाह पूर्व, विवाह पश्चात पर-स्त्री या पर-पुरुष गमन को 'फैशन',शान मानकर आधुनिक, अत्याधुनिक, प्रगतिशील दिखाने में गर्व कर रहे हैं। परम ज्ञानी के सत्य प्रवचन को मानो और ऐसे व्यभिचार-दुराचार से पूर्णतः बचो, भवों-भवों भटकने के महापाप, कुव्यसन से बचो, बचाओ। वेश्यावृत्ति-जो किसी की पत्नी नहीं, पैसे के बदले शरीर बेचने वाली स्त्री, भोग वासना, धन लिप्सा पूर्ति में जो वृत्ति अपनाती है और जो-जो उनके साथ भोग भोगते हैं, वे सभी इस वेश्यावृत्ति के महापाप में पड़कर नरक-तिर्यंच में बार-बार जाकर चतुर्गति भ्रमण बढ़ा रहे हैं। आधुनिक युग में, आधुनिक रूप बन गए हैं। जुआ-जिस घटना, विषयवस्तु में दोनों पक्षों को कोई हिताहित नहीं है, उस पर शर्त लगाना, ऐसा हो या न हो तो अमुक राशि एक-दूसरे को देगा-लेगा। चिड़िया (पक्षी) उड़ रहा है, अब इधर मुड़ेगा या उधर, आज वर्षा की बूंदें गिरेंगी या नहीं (पतरे), अमुक जीतेगा या हारेगा, आज तो अमुक फिल्मी सितारे को सर्वोच्च न्यायालय जमानत स्वीकार करेगा या नहीं, अमुक बल्लेबाज शतक बनाएगा या नहीं, अमुक फिल्म तारिका का विवाह अमुक से होगा या नहीं या तलाक देगी या नहीं, ताजमहल विश्व का प्रथम आश्चर्य माना जाएगा या नहीं आदि घटनाओं पर एक व्यक्ति एक रुपया लगाता है (लगाई वाल), बदले में घटना घटने-न घटने पर दूसरा दस रुपये देगा (खाई वाल) कहलाता है। चौके-छक्के वालों के खेलों पर करोड़ों-अरबों के सट्टे होते हैं। अमुक अंक खुलेगा या अमुक-ऐसे जुए तो अब सामान्य हो गए हैं। लगाईवाल में गरीब, मजदूर किसान से लगाकर करोड़पति और खाईवाल अरबोंपति होते हैं। ये सब कानून से निषिद्ध अपराध हैं पर खूब खेले जा रहे हैं। सोने, चांदी, कंपनियों के अंशपत्र (शेयर) के सट्टों में तो पूरा देश लगा है, हजारों लोग, आम व्यक्ति बरबाद होते और अरबोंपति-विदेशी कंपनियां, 1474
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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