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________________ अंडा उत्पादकों ने करोड़ों-अरबों का उद्योग लगाकर लाखों-करोड़ों लगाकर भारी विज्ञापन किया है। उसमें उसे शाकाहारी बताकर अहिंसा प्रेमी, दयालु जनमानस भी भ्रष्ट करने का दुष्कृत्य, स्वार्थवश किया है। पांच इन्द्रियों वाली मुर्गी के गर्भ से जन्मने वाला पंचेन्द्रिय प्राणी है- अंडा । मुर्गे के जीन मिश्रित आहार मुर्गियों को दिया जाता है। अंडा होते ही उसे मां से अलग कर देते हैं, सेने का अवसर नहीं देते अतः वह बच्चा नहीं बन पाता। वह एक दसों द्रव्य प्राणों वाला, पंचेन्द्रिय जीव है। उसे भी मरने से भारी वेदना होती है। मछली पानी से अलग करते ही तड़फ तड़फ कर मरती है। मुर्गे पंचेन्द्रिय प्राणी हैं। बकरे-बकरी, भेड़, भैंस, भैंसे, गाय-बैल-बछड़ों को काटकर कटवाकर खाना खिलाना कुव्यसन है। घोरतम हिंसाकारी है। जैन आगमों के अनुसार काटने कटवाने, खिलाने-खाने वाले दोनों घोर नरक में जाकर अनन्त जन्म-मरण करते रहेंगे, ऐसा भयंकर दुष्फल आया है। कई विषम रोगों, प्राण लेवा रोगों का भी कारण मांसाहार है। उसमें शक्तिदायक प्रोटीन होते हैं, वह भी झूठ है, भक्षणकर्त्ता खूंखार क्रूर हो जाता है। पशु, राक्षसी वृत्ति में आ जाता है। आज जैन नवयुवक नवयुवतियों की ऊंची पढ़ाई ने उन्हें नास्तिक बना दिया, स्वच्छंद भोगवादी बना दिया। मांसाहार को भी अब ऊंची सोसायटी का मानदंड बना दिया। खाते-खिलाते गर्व करते, इतराते हैं, शान समझते हैं। घोर पाप, भयंकर कुव्यसन है, भवों भवों भटकाने वाला, अधोगति में ले जाने वाला है। उपचार के लिए, मरणासन्न को बचाने, डॉक्टर ने मांसमिश्रित औषधि या मांसाहार, मछली तेल आदि बताएं तो "अपने बंदे के प्राण बचाने के लिए दे दिया तो क्या गया", ऐसे कुतर्क तो जैन युवक, अत्याधुनिकाएं मुझसे भी कर चुके हैं। उससे लगता है कि यह वीभत्स, घिनौना, नारकी का बंध करवाने वाले कुव्यसनी, पक्षपाती महावीर के अनुयायियों के कुलों में जन्म ले चुके हैं। करुणा आती है कि विशिष्ट पुण्य से ऐसा शाकाहारी कुल मिला और वीतरागी की वाणी श्रवण- पालनका अवसर शक्ति आदि मिले पर कुमार्ग पर जाकर अनन्त भव के अनन्त दुख बढ़ा रहे हैं। बचो, बचाओ । पर-स्त्री, पर-कन्या से भोग, पर-पुरुष से भोग - चार्वाकवादी - खाओ, पीओ, मौज करो, किसने देखा, स्वर्ग-नरक, आत्मा-परमात्मा- ऐसे मानने वाले, कुलों में जन्मे नई पीढ़ी वालों ने, विवाह पूर्व शरीर संबंध बनाने को भी उच्च कहलाने वाली सोसायटी वाला माना, शान बघारने लगे, उसे सामान्य मानने लगे। चारित्रिकपतन की पराकाष्टा हो गई। उसके दुष्परिणाम गर्भपात, कई रोग, 46
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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