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________________ सभी मिट्टी के । सबके शरीर मिट्टी के । सारा धन वैभव-साधन सामग्री मिट्टी से उपजे निकले बने हुए हैं। इन सबको पुद्गल जन्य, पौद्गलिक कहेंगे। यह प्रथम संयोग है। दूसरा संयोग-रागादिभावकर्म इन्हीं के मिलने से, संयोग से, शरीर की आसक्ति या इन्द्रियासक्ति के कारण मोह-ममता, राग-द्वेष, क्रोध-मान-माया-लोभ, रति-अरति, हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह आदि विकारी भाव होते हैं। ये पुद्गल कर्म के उदय में होते हैं। उससे समक्ष आए अनुकूल या प्रतिकूल निमित्त आते हैं। वे मानें- व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति। ये सभी पौद्गलिक हैं। इनसे प्रेरित प्रभावित होकर मैं (चैतन्य स्वरूपी, ज्ञाता-द्रष्टा स्वरूपी आत्मा) रागादि विकार भाव करता हूं। ये रागादि भाव मेरे ही हैं, मैं ही कर रहा हूं, जिन वाणी के अनुसार रागादि (क्रोधादि, मोहादि) मेरा स्वभाव नहीं पर, स्व-भाव, स्व-स्वरूप से अनभिज्ञ, मैं विकार भाव करता रहता हूं। मेरा किया हुआ कार्य है अतः उसे कहा रागादि भाव कर्म। पुद्गल से हुआ, अतः पौद्गलिक या अजीव भाव है। अजीव से प्रेरित हो मैंने किया । इसलिए अजीव भाव कहा। यह दूसरा संयोग । तीसरा संयोग-ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म इससे ज्ञानावरण आदि कर्म मुझ से बंधे। ये कर्म भी पुद्गल से बने । महावीर एकमात्र दार्शनिक, धर्मवेत्ता हैं जो कर्म को मात्र जीव के संस्कार नहीं, भाव नहीं, पौद्गलिक कहते हैं। संसार (लोक) में कार्मण वर्गणा के अनन्त पुद्गल हैं । पुद्गल हैं तो वर्ण, गंध, रस, स्पर्श गुण वाले हुए। उन्हीं से, मेरे रागादि भाव कर्म से, रागादि की गाढ़ता (तीव्रता ) या मंदता के अनुसार ज्ञानावरणादि कर्म बनते हैं, मुझसे जुड़ते-मिलते हैं, बद्ध-स्पृष्ट (स्पर्शित होना) होते हैं। यह तीसरा संयोग है। चक्रव्यूह मेरे, शरीरादि के संयोग से रागादि होते हैं। उनसे ज्ञानावरणादि कर्म का संयोग होता है। उनसे, उनमें से शरीर रचना हेतु नाम कर्म, गोत्र कर्म, आयुष्य कर्म कार्य करते हैं। वेदनीय कर्म के फल से सुख-दुख, अनुकूल-प्रतिकूल व्यक्ति, वस्तु, परिस्थितियां मिलती हैं इनसे पुनः रागादि । रागादि से कर्मादि, कर्मादि से पुनः शरीरादि। ऐसी अनादि की श्रृंखला चली आ रही है । चतुर्गति के चक्रव्यूह में मैं फंसा हुआ हूं। 31
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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