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________________ संयोगी का वियोग निश्चित है। मेरे साथ मेरे निज-गुण हैं, स्व-पर को जानना, देखना, अनुभव करना आदि। जैसे मिश्री का, मिठास गुण से शाश्वत संबंध है, कभी अलग नहीं होता, उसे शास्त्र में तादात्म्य संबंध कहा, वैसे ही संयोग-संबंध तो छूटने वाले और ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि कभी न छूटने वाले, शाश्वत, सदा जुड़े रहने वाले मेरे (आत्मा के) गुण हैं। ऐसे सभी अन्य द्रव्यों से, शरीरादि से भिन्न मैं जीव द्रव्य हूं। ऐसा पक्का आत्मसात हो, आत्मा में रम जाए तो सम्यक् ज्ञान कहलाता है। नवतत्व-सार आत्मतत्व-उक्त विवेचन से यह समझ में आया कि आत्मा द्रव्य, अपने निज गुणों में अवस्थित, सदा स्थित, एक स्वतंत्र पृथक अस्तित्व वाला है। अन्य पांचों मुख्यतः पुद्गल द्रव्य-निर्मित शरीर से अनन्त काल से संयोगित (जुड़ा) होते भी मैं मुझ में हूं, यह इसमें है। परन्तु यह इतना आसानी से समझ में नहीं आता, पक्का नहीं होता, अवधारणा दृढ़ नहीं होती, आत्मसात नहीं होता, अन्तरतम में श्रद्धा पक्की नहीं होती अतः यह, अजीव से बंध जाता है। उस बंधन का मुख्य कारण है-आत्मा के, मेरे ही, निरन्तर होने वाले शुभ या अशुभ भाव। शुभ भाव से पुण्य कर्म का और अशुभ भाव से पाप कर्म का आना होता है। ऐसे छः तत्व हुए, जीव, अजीव, बंध, पुण्य, पाप और आश्रव। यदि आने वाले कर्मों को रोक दें तो उसे कहा-संवर। पूर्व बद्ध कर्म बंध को हटाएं, झाड़ दें, दूर करें तो उसे कहा-निर्जरा। अंश-अंश में निर्जरा होते-होते सर्व कर्म से रहित हो जाना, घाती कर्मों से रहित हो जाना, मोक्ष तत्व है। इन नव तत्वों का जैसा स्वरूप तत्वतः, सत्यतः, भावतः, परमार्थतः, भगवान् महावीर ने देखा-जाना-अनुभव किया, वैसा ही बताया। इनका स्वरूप समझने, उन भावों को आत्मभावपूर्वक समझने, उनमें श्रद्धा, प्रतीति करने से सम्यक्त्व होती है। एक बार सम्यक्त्व हो गई तो उसका मोक्ष निश्चित है। सम्यक्त्वी की दुर्गति नहीं होती। अधोगति अर्थात् तिर्यंच गति, नरक गति का बंध नहीं पड़ता। ऐसी सम्यक्त्व का भारी महत्व है। उसका मूल है, इन नौ तत्वों को समझना। आत्म तत्व को शेष तत्वों से पूर्णतः भिन्न जान लेना। आत्मा का स्वरूप-आत्मा, जीव, चेतन, जीवास्तिकाय, प्राण, प्राणी, भूत, जीव-सत्व को पर्यायवाची मानना। आत्मा और जीव मिलकर जीवात्मा शब्द है। 1264
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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