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________________ व्यापक हो गया कि आज दीन निर्धन मजदूर से लगाकर करोड़ अरबपति, सभी माता-पिता, शिक्षक, शिक्षाशास्त्री, शिक्षण-संगठन संस्थाएँ, सामाजिक संगठन, धार्मिक संघ, राजनैतिक दल, इनके नेता, वैज्ञानिक, राजनेता, राज्य सरकार, डॉक्टर, अभियांत्रिक, कानूनज्ञ, न्यायाधीश आदि जो विद्या, कला, कार्य प्रवृत्ति में लगा है, उनके लक्ष्य में मात्र मनुष्य, मनुष्यों के भी अपने-अपने समूह का यह वर्तमान जीवन सुखी हो जाय, इसी में सभी अपनी सफलता मानते हैं। यह भोगवादी, पांचों इन्द्रियों के विषयों को छककर जी भरकर खूब भोगने की महत्वाकांक्षा, तमन्ना रखने वाला भोगवादी युग, भोगवादी संस्कृति पनपी है। दिन-पर-दिन सुरसावत बढ़ रही है, आवश्यकता पूर्ति में वैज्ञानिक आविष्कारों ने भारी क्रान्ति की है। वर्तमान मनुष्य जीवन, उसमें भी बस वर्तमान सुख से बीते फिर उस हेतु अन्याय, अनीति, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अपराध, डाके, हत्या कुछ भी क्यों न करना पड़े, खूब कमाओ, खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ । शरीर ही आत्मा, दोनों एक ही हैं- शरीरवादी - चार्वाकवादी - इसके अतिरिक्त सभी भारतीय दर्शन किसी भी रूप में मानें पर आत्मा, परमात्मा, कर्म, कर्मफल भोगने हेतु चारों गतियों में परिभ्रमण मानते हैं। एकमात्र शरीर ही आत्मा है, आत्मा ही शरीर ऐसा मानने वाले चार्वाकवादी ही हैं। पंच महाभूत जड़ - अजीव पदार्थ हैं, उनमें ही जीवरूप हो जाना कोई नहीं मानता। शरीरवादी या चार्वाकवादी केवल ऐसा मानते हैं। जैसे गुड़-महुआ के संयोग से मादकता उत्पन्न होती है वैसे ही पांच तत्वों या महाभूतों के माता-पिता के संयोग से जीवत्व उत्पन्न हो जाता है, पृथक किसी आत्मा के अस्तित्व को नहीं मानना । वैज्ञानिक नए चार्वाकवादी हैं-अब वैज्ञानिक भी ऐसा मानने लगे हैं कि दो वस्तुओं के संयोग से जैसे कोई तीसरी नई ऊर्जा उत्पन्न होती है, ऐसी ही मनुष्य में ही वह ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। वस्तुओं के संयोग में कभी-कभी न्यूनाधिकता से वह ऊर्जा नष्ट हो जाती है। वह ऊर्जा ही आत्मा मान लो । अब तो रासायनिक पदार्थों से मनुष्य या जीवन, जीवशक्ति उत्पन्न करने के भरसक प्रयास, वैज्ञानिक प्रयास चल रहे हैं। पहले जैविक कोशिका से वनस्पति में नई-नई प्रजातियां, उन्नत बीज बने, फिर वही प्रयोग पशुओं पर, दुधारू गाय-भैंसों की नई नस्लों पर हुए । एक भेड़ की एक कोशिका से वैसी की वैसी भेड़ बनाई। अब जैविक कोशिका में जो-जो रसायन (भौतिक तत्व) हैं उन्हें भौतिक पदार्थों, जड़ पदार्थों से जीव बनाने, मनुष्य (क्लोन) बनाने के प्रयास नवचार्वाकवादी वैज्ञानिक कर रहे हैं। पंच महाभूतों 20
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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