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________________ पूर्व में किसी गति में (भव में ) था । पुनः नया भव, नई गति मेरे कर्मानुसार होगी । पूर्व भव का नाश, व्यय हुआ। उसी क्षण नए भव में आया- उत्पाद हुआ। इसका भी व्यय निश्चित है, पुनः मानो देवभव में उत्पाद है। ये उत्पाद-व्यय भी निरन्तर मुझमें हो रहे हैं। प्रत्येक में मैं एक ध्रुव आत्मा वही का वही । (4) चार्वाक दर्शन-खाओ-पीओ-मौज करो- इसके प्रणेता आचार्य वृहस्पति कहे जाते हैं। पांच तत्व या पाँच महाभूत हैं। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश के एक निश्चित समानुपात में माता-पिता के संयोग से एक शरीर का जन्म होता है। उसी में एक शक्ति, ऊर्जा, उत्पन्न हो जाती है जिससे वह जानता, देखता, खाता-पीता, खेलता - कूदता, अनुभव करता है। चाहे उसे जीव कहो, आत्मा कहो। जब इन पांचों में असन्तुलन होता है तो बिखर जाते हैं, पांचों तत्व, पांचों महाभूत पुनः उस विराट में विलीन हो जाते हैं। शरीर की उत्पत्ति पर आत्मा उत्पन्न हुई। शरीर के नाश पर वह भी नष्ट हुई, न तो पूर्व में कोई आत्मा थी, न कोई बाद में रहती है। प्रत्येक नई-नई आत्माएं, बार-बार उत्पन्न होती और मर जाती हैं। न पूर्व जन्म है, न पश्चात जन्म है। न कोई आत्मा बची जिसे स्वर्ग में जा खूब सुख या नरक में जा दुख भोगने हैं। स्वर्ग-नरक नहीं हैं। जो कुछ है बस यहीं है, बस यही भव है, अतः खूब खाओ, खूब पीओ, मौज उड़ाओ। “यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा धृतं पीवेत । " जब तक जीओ, सुख से जीओ, चाहे ऋण करना पड़े, घी पीओ। क्योंकि आगे-पीछे कुछ नहीं है, मृत्यु के बाद न कोई स्वर्गगामी आत्मा है, न कोई नरकगामी आत्मा है। बस यह जो वर्तमान जीवन है, वह है, अतः कुछ भी, कोई भी काम करो, इस जीवन को सुखमय बना लो। आत्मा, परमात्मा, कर्म, कर्मफल, उसे भोगने हेतु स्वर्ग-नरक सबको नकारने वाले घोर नास्तिकवादी चार्वाकवादी कहलाए। पूर्व में सभी अस्तित्ववादी धर्म प्रवर्तकों ने उसे कोसा, अमान्य किया परन्तु वह अन्दर तक ऐसा गहरा जमा रहा कि आज के भौतिकवादी, भोगवादी, वैज्ञानिक, औद्योगिक क्रान्तिवादी युग में खूब फल-फूल रहा है। आस्तिकवादी धर्म दर्शनों के मानने वालों की आगे की पीढ़ी, भौतिक उन्नति में इतनी चौंधियाई हुई है कि उन्हें अब प्रमाण न होने से, आत्मा-परमात्मा-कर्म-कर्मफल, पुण्य-पाप के भारी फल, भोग स्थान स्वर्ग-नरक पर विश्वास नहीं है। खूब पढ़ो लिखो, ऊंचे-ऊंचे पदों पर पहुंचो, ऊंचे, बड़े-बड़े व्यापारी व्यवसायी उद्योगपति आदि बन खूब कमाओ, खूब खाओ, खूब छककर भोग भोगो और मौज उड़ाओ। इस आकर्षक चार्वाकवाद का साम्राज्य कितना 19
SR No.009401
Book TitleJainattva Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaymuni
PublisherKalpvruksha
Publication Year2012
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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