SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह दृश्य ५ स्थान-उदय सागर का तट समय-संध्या ( मानसिंह को ठहराने के स्थान का निरीक्षण करते हुए भामाशाह और अमर सिंह) भामाशाह-युवराज ! मानसिंहको ठहराने के लिये यह स्थान सर्व सुन्दर रहा न ? अमरसिंह-यह स्थान प्रकृति से ही रमणीय है, पर आपकी प्रबंधचातुरी से इसका सौन्दर्य विशेष वृद्धि को प्राप्त हो गया है। __ भामशााह-मेरी प्रबन्ध-चातुरी क्या ? पर इतना अवश्य है कि अतिथि की सुविधा के लिये समुचित व्यवस्था कर दी है। अमरसिंह-समुचित नहीं, असाधारण कहिये । यहांकी कलात्मक सज्जा भी नेत्रों का आकर्षण करने में सिद्धहस्त है। भामाशाह-यह और कुछ नहीं. महाराणा-प्रदत्त सुविधा का चमत्कार है। अमरसिंह-अस्तु, अब आपकी तालिका के अनुसार कितने कार्य अवशिष्ट रह गये ? भामाशाह-चार । प्रथम कलश-कामिनियोंको प्रभात में यहां उपस्थित होने की सूचना भिजवाना; द्वितीय सूर्योदय से पूर्व आगमन-पथ पर गुलाब जल सिंचन का प्रबन्ध करना; तृतीय राजकीय वाद्यवादकों को उपस्थित रहने के लिये सावधान करना........... ।
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy