SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामाशाह प्रताप सिंह - ( प्रसन्न मुद्रा में ) भामाशाह ! आपके इस संक्षिप्त उत्तर से मेरा विस्तृत मनोरथ पूर्ण हो गया । भामाशाह - नरेन्द्र ! मैं अभी आपका अभिप्राय नहीं समझा । प्रताप सिंह - अभिप्राय स्पष्ट है। मुझे इस सेवा के अनुष्ठान में सर्वाधिक सहायता आपसे ही लेनी है। भामाशाह - ( सविनय ) पर मुझ साधारण व्यक्ति से आपको क्या सहायता मिल सकेगी ? प्रताप सिंह - आप अपने को भले ही साधारण समझें, पर मैं ऐसा नहीं मानता। मुझे मानव-गुणों के परीक्षण का अभ्यास है और अवसर मेरे निर्णय को प्रमाणित कर देगा । भामाशाह - राजेन्द्र ! यदि आपकी इतनी कृपा मुझपर है तो मैं भी आप जैसे प्रतापी वीर - केशरी की सेवा को अपना अहोभाग्य मानता हूं । प्रताप सिंह - सेवा मेरी नहीं, इस मेवाड़ मेदिनी की करनी है तथा यह सेवा आपको मेवाड़ के मन्त्री के रूप में करनी होगी । भामाशाह—पर मैं अपने निर्बल कन्धों से यह वृहद् भार कैसे वहन कर सकूंगा ? प्रताप सिंह - जैसे सूर्य का सारथी अरूण । भामाशाह — पर वह चिरभ्यस्त है और मेरे लिये यह भार सर्वथा नवीन है । प्रताप सिंह - नवीन कैसे ? आपके पितृवर भी यही कार्य करते रहे हैं, कुल क्रमागत कार्य नवीन नहीं कहा जा सकता। यह राज्य - ५१
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy