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भामाशाह
उसे मनाती थी। इसी प्रकार प्रकृति की गोद में मनोविनोद का कार्यक्रम चलता रहा। ___ मोमा-समझ गया, आज तू दिवस भर की क्रीड़ा से श्रान्त हो गयी होगी, अतः जा, वस्त्र परिवर्तन कर विश्राम कर। हम अभी कुछ देर यहां बैठेंगे।
( मनोरमा का गमन )
अलका-नाथ ! अब मनोके अंग प्रत्यंगसे यौवन फूट चला है, अतः अब इसके कौमार्य को दाम्पत्य में परिवर्तित कर देना ही उचित है। __ भोमा-तुम्हारी सम्मति यथोचित है प्रिये ! पर हमें वर खोजने का श्रम नहीं करना, कारण वह इसके जन्म से पूर्व ही निश्चित हो चुका था। अतः शीव्रता की क्या आवश्यकता ?
अलका-इसी कारण मैं शीघ्रता की कह रही हूं कि कन्यादान का संकल्प चतुर्दश वर्ष पूर्व ही कर चुके, अब दान दी हुई वस्तु अधिक समय तक अपने समीप रखना ठीक नहीं।
भोमा–यदि तुम्हारा ऐसा ही आग्रह है तो मैं कल ही लग्नपत्रिका लिखवाने के लिये कुल पुरोहित से मुहूर्त निकलवाऊँगा। ___ अलका-शीघ्र ही मुहूर्त शोधन करवाइये, विलम्ब करने से लग्न की अवधि समाप्त हो जायेगी। फिर हमें आगामी वर्ष की लग्न की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। ___ भोमा-ऐसी शंका मत करो! आगामी वर्ष नहीं, इसी वर्ष विवाहोत्सव सम्पन्न होगा। मैं आज ही शाह भारमल्ल की स्वीकृति पाने के लिये रणथम्भौर को पत्रिका लिख रहा हूं।
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