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________________ भामाशाह बुद्धिमत्ता और वीरता पर मुझे पूर्ण विश्वास है। यही कारण है जो मैं उसे दुर्ग-रक्षक के पद के लिये उपयुक्त मानता हूं। ___ उदय सिंह-हो सकता है आपकी धारणा सत्य हो, पर एक विजातीय से स्वामिभक्ति की आशा कैसे की जा सकती है ? स्वजातीय राजपूत होता तो मैं उसे विशेष विश्वासपात्र समझता। मंत्री-मेवाड़पते ! ऐसी कल्पना न करें। जैन राजपूतों की अपेक्षा अधिक विश्वासपात्र हैं। उनको स्वामिभक्ति के विषय में आपको मुझसे भी अधिक अनुभव है। जब आपके शैशव में ही वीरांगना पन्ना धाय दुष्ट बनवीर के जाल से आपको मुक्त कर भाग निकली थी, तब किसी भी राजपूत नरेश ने आपको आश्रय देने का साहस नहीं किया । पर जैनरत्न आशाशाह की वीर माता ने बनवीर की कोपाग्नि की चिन्ता न कर अपनी गोद में शरण दी थी और आशाशाह ने वर्षों गुप्त रीति से आपका पालन कर अपनी स्वामिभक्ति का अनुपम आदर्श उपस्थित किया था। उसी अभयदानी आशाशाह के अति साहस के फलस्वरूप आज हम आपको अपने स्वामी के रूप में देख रहे हैं। ___ उदय सिंह-सत्य कहते हो अमात्यवर ! वास्तव में आशाशाह ने मुझे शरण दे अपने सर्वनाश को ही शरण दिया था, पर उसकी बुद्धिमत्ता और दैव की अनुकूलता से ऐसा दुर्दिन न आया। निस्सन्देह उसका यह अभयदान जैन जाति पर विश्वास करनेके लिये वाध्य कर देता है। मंत्री-इसी कारण मुझे भारमल्ल की कर्त्तव्यनिष्ठा पर विश्वास
SR No.009392
Book TitleBhamashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherJain Pustak Bhavan
Publication Year1956
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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